Thursday, November 24, 2011

"पित्र हमारा देखणा छन"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
झळ-झळ पित्र कूड़ौं बिटि, गौं का न्यौड़ु,
जख भि छन,
ऊजड़दा कूड़ा, बजेंदा पुंगड़ा,
निराश घर गौं, सगोड़ा भि,
हे! हमारा तुमारा,
भौत उदास होयुं छ, बल ऊँकू मयाळु मन,
आज हाथ हमारा तुमारा,
कुछ भि निछ,
सोचि सकदौं, पर कुछ नि करि सकदौं,
च्हैक भि,
किलैकि, आज वक्त की मार छ,
पर क्या होलु, हे बद्रीविशाल जी,
हमारा उत्तराखंड कू यनु विकास हो,
हमारा हाथ सी,
भौ भल्यारी, होंणी खाणी, सब्बि धाणि,
पहाड़ कू मिजाज भलु रौ,
हम भि ख्याल रखौं, अर्थ हो अनर्थ ना,
यनु माणिक, हे! "पित्र हमारा देखणा छन".
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २२.११.२०११)
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

"उत्तराखंड की धरती मा"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २४.११.११)
सुणा तुम बतौणु छौं,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू वैका गीत छौं.....

बिना बोल्यां जख बुरांश,
डाळ्यौं मा घुघती हिल्वांस,
गान्दा गीत रूमि झूमि,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू वैका गीत छौं.....

अलकनन्दा भागीरथी का,
किनारा कथगा छन प्यारा,
घट्ट घुम्दा गाड मा,
वे प्यारा मुल्क हमारा,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू वैका गीत छौं.....

फ्यौंलि,पय्याँ, आरू, घिंगारू,
जख ऊँचि धार बिटि दिखेंदु
उत्तराखंड हिमालय प्यारू,
पुंगड़ा, पाखा, बण बूट,
रीत रसाण, रौ रिवाज,
पौणा तैं पिठैं लगौंदा,
देवतौं कू मुल्क देवभूमि,
जख देवतौं का धाम छन,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू वैका गीत छौं.....
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/

Wednesday, November 16, 2011

"उत्तराखण्ड मा रेल"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
ऋषिकेश बिटि कर्णप्रयाग तक,
चललि बल रेल,
देखा दौं कथगा सुन्दर छ,
बल यू खेल.....
ह्वै सकदु प्रवासी उत्तराखंडी,
रेल मा बैठिक, अपणा उत्तराखण्ड,
परदेश बिटि बौ़ड़िक आला,
अपणा मुल्क की सुन्दरता मा,
चार चाँद लगाला, ख़ामोशी भगाला,
घरू का बन्द द्वार मोर ऊगाड़ला,
ऊदास कूड़ी पुंगड़ि आबाद होलि,
विकास की बयार बगलि,
सुन्दर सुपिनु अर खेल छ,
अगर! यनु होलु त समझा,
"उत्तराखण्ड मा रेल",
एक भलु खेल छ.......
पर यनु भी ह्वै सकदु,
प्रवासी उत्तराखंडी बौ़ड़िक नि आला,
भैर का लोग, उत्तराखण्ड की जमीन,
कौड़ी का भाव खरीदिक,
महल बणाला, अपणा पाँव जमाला,
हे! उत्तराखंडी भै बन्धो, हमारी ठट्टा लगाला,
यनु होलु खेल, ऊँका खातिर वरदान,
"उत्तराखण्ड मा रेल", जरा सोचा.......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १७.११.११ )
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Tuesday, November 15, 2011

"बाग़ अर रीक्क"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
जौंकु नौ सुणिक, हे! राम,
मनखि का मन मा,
भारी डौर पैदा ह्वै जान्दि छ,
हो भी किलै ना,
होन्दा ही खतरनाक छन...
कै जमाना रुद्रप्रयाग मा,
निर्भागी मनस्वाख बागन,
कै मनखि खैन,
अजौं भी खांदा छन,
रीक्क मन्ख्यौं बगदौन्दा छन...
पर आज का जमाना मा,
मनखि "बाग़ अर रीक्क",
बण्याँ छन, होयां छन,
मन्ख्यौं का खातिर........
सोचा दौं,
क्या ईलाज छ युंकू?
मनखि ही खोजि सकदु,
जन हमारा उत्तराखंड मा,
भ्रष्ट्राचार का खातिर,
लोकायुक्त बिल पास करिक,
ईलाज कू प्रयास होणु छ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १५.११.२०११)
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Wednesday, November 9, 2011

"उत्तराखंड दिवस"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ९.१०.११)
जै फर गर्व छ, हरेक उत्तराखंडी तैं,
हो भि किलै न, लड़ी भिड़िक लिनि,
उत्तराखण्ड राज्य, उत्तराखण्ड वासियौंन,
प्यारा प्रवासियौंन, होणी खाणी का खातिर,
पराणु सी प्यारू, दुनिया मा न्यारू,
हे! उत्तराखण्ड राज्य हमारू.....
संकल्प हो सब्यौं कू,
बोली-भाषा, संस्कृति कू सृंगार,
मन सी सदानि, उत्तराखण्ड सी प्यार,
भला काम करिक समाज कू मान,
विरासत फर होयुं चैन्दु अभिमान,
जौन दिनि बलिदान अपणु,
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण का खातिर,
मन सी करा ऊँकू सम्मान,
देवभूमि छ हमारी जन्मभूमि,
जख विराजमान छन बद्रीविशाल,
कथगा प्यारू रंगीलो कुमाऊँ,
अर छबीलो प्यारू गढ़वाल.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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