Friday, June 25, 2010

(छट्ट छुटिगि प्यारु पहाड़)

छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदौं,
ऊ प्यारु पहाड़-२
जख छन बाँज बुराँश,
हिंसर किन्गोड़ का झाड़-२

कूड़ी छुटि पुंगड़ि छुटि,
छुटिगि सब्बि धाणी,
कखन पेण हे लाठ्याळौं,
छोया ढ़ुँग्यौं कू पाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

मन घुटि घुटि मरिगि,
खुदेणु पापी पराणी,
ब्वै बोन्नि छ सुण हे बेटा,
कब छैं घौर ल्हिजाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

भिन्डि दिनु बिटि पाड़ नि देखि,
तरस्युं पापी पराणी,
कौथगेर मैनु लग्युं छ,
टक्क वखि छ जाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदौं.....

बुराँश होला बाटु हेन्ना,
हिंवाळि काँठी देखणा,
उत्तराखण्ड की स्वाणि सूरत,
देखि होला हैंसणा.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

दुःख दिदौं यू सब्यौं कू छ,
अपणा मन मा सोचा,
मन मा नि औन्दु ऊमाळ,
भौंकुछ न सोचा.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

जनु भी सोचा सुणा हे दिदौं,
छट्ट छुटिगि, ऊ प्यारु पहाड़,
जख छन बाँज बुराँश,
हिंसर किन्गोड़ का झाड़.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित,प्रकाशित उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल