Friday, November 29, 2013

"द्वी आंखा मूंजि"

कंदूड़्यौं फर हात लगैक,
पुराणु बोयुं आज काटणु छौं,
हात काटी दिन्‍युं अपणु,
ऊंकू करयुं भुगतणु छौं,
तुम भि होला भुगतणा,
मेरी तरौं,
मैं केकी बात कन्‍नु छौं?
मैं कैकी बात कन्‍नु छौं?
आज फिर बोण कू,
बग्‍त अयुं,
जनु ब्‍वैल्‍या तनु पैल्‍या,
मैं "द्वी आंखा मूंजि",
भारी घंघतोळ मा पड़ि,
प्‍यारा घंघतोळ जी की तरौं,
कपाळि पकड़ि सोचणु छौ,
कै तैं लगौं गौळा.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
26.11.13

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