Monday, March 25, 2013

"दगड़यौं मेरी जन्मभूमि"

जैं धरती मा मैं पैदा होयौं,
तैं धरती माँ कू मैं शत्त शत्त प्रणाम करदु,
ये उत्तराखंड अपणा गढ़वाळ देवी देब्ता,
घर गौँ धार खाळ जख छन ऊंका मंडुला,
मन सी ऊंकू प्रणाम करदु ध्यान लगौंदु।
 
अपणा माँ बाप सी दूर,
द्व़ी पैंसा कमौण का खातिर,
जू मैं अपणु गढ़वाळ छोड़ी,
वे प्यारा मुल्क मैं, 
कब्बि नि भूली सकदु,
मेरी रग रग मा आज बस्युं छ।
 
लोगुन बोलि परदेश जवा,
अर पैंसा खूब कमावा,
पैंसा हर क्वी कमै देन्दु,
माँ बाप कमौणु,
सबसि मुश्किल होन्दु,
आज मेरा ब्वे बाब,
यीं दुनिया मा निछन।
 
नौकरी का खातिर,
हम्न सब्बि धाणी ख्वै,
मन भौत उदास ह्वै,
घर गौं ब्वे बाब की याद ऐ,
बिराणा मुल्क परदेश मा,
मन हताश निराश रै।
 
आज अपणु गढ़वाळ छोड़यालि,
जौन हमतैं पाली पोषिक बडु बणाई,
ऊँ तैं द्वी घड़ी कू प्यार नि दी सक्यौं,
अब त दगड़यौं मन मा एक ही बात छ,
अपणा गढ़वाळ घर गौं लौटिक,
कुछ यनु अनोखु विकास कू काम करौं,
जन्मभूमि कू अपणा हातुन श्रींगार हो, 
मैं फर मेरी पराण सी प्यारी जन्मभूमि तैं,
दगड़यौं गर्व हो अर मेरी मन इच्छा पूरी हो,
-मनमोहन सिंह जयाड़ा सुपुत्र जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित 25.3.13 

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