Wednesday, December 30, 2015

पाड़ की बिजली पाणी.....


दिल्‍ली मा खोज्‍दु ऐगि हम्‍तैं,
पाड़ की बिजली पाणी,
जागा हे मेरा उत्‍तराखण्‍ड्यौं,
तुम्‍न यनु भी जाणी......
अपणौ कू दर्द यनु हि होन्‍दु,
हम्‍न यनु नि जाणी,
हम्‍तैं खोज्‍दु किलै औणि,
पहाड़ की बिजली पाणी......
तीस बुझौणु पाणी हमारी,
बिजली अंधेरु भगौणि,
याद दिलौणा छन ऊ हम्‍तैं,
क्‍या पाड़ की यादि नि औणि.......

मनखि छौं हम उत्‍तराखण्‍ड का,
मन मा कुछ अहसास करा,
उत्‍तराखण्‍ड की धरती खुदेणि,
तुम भी खुदेवा जरा जरा......
बिजली पाणी सी सबक लेवा,
पाड़ सी तुम नातु जोड़ा,
कळकेर धरती उत्‍तराखण्‍ड की,
प्‍यार करा तुम वीं सी थोड़ा.......


दिनांक 6.12.2015

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