Wednesday, September 20, 2017

हमारे एक मित्र.....




हमारे एक मित्र,
बोलते हैं धीमा,
जब जब मिलते हैं,
प्यार से पूछते हैं,
कब करवा रहे हो बीमा......

कहते हैं कब आऊं,
कहो तो दो फार्म लाऊं,
भाभी का भी करवा लो बीमा,
उन्हें भी फायदा,
और तुम्हें भी.....

मैंने पूछा,
कैसा फायदा?
मित्र ने बताया,
भाभी जी मर जाए तो तुम्हें,
तुम मर जाओ तो भाभी जी को,
फायदा ही फायदा होगा,
अब आप ही सोचिए,
मरने के बाद,
क्या फायदा,
क्या घाटा.....



एक दिन वो मित्र,
एक शादी में मिल गए,
चाट पकोड़ी लाकर,
मुझे खिलाई,
कब करवा रहे हो बीमा,
याद मुझे दिलाई.....

मैंने कहा यार,
एक दिन घर पर आओ,
दो फार्म भराओ,
सोचा ऐसे टल जाएगा,
मुझे नहीं था पता,
वो घर पर आएगा,
पत्नी से पैसे ले जाएगा.....

मैं घर पर नहीं था,
जब वो बीमा कराने आया,
पत्नी को समझाया,
इतने पैसे दे दो,
भाई साहब को कहना,
ये फार्म भर देना.......

घर पहुंचा तो,
पत्नी कहने लगी,
तुम्हारे दोस्त आए थे,
प्रीमियम के पैसे ले गए,
कह गए,
ये फार्म भर देना.....

फार्म भरकर मैं,
उसके चक्कर काटने लगा,
संपर्क करता तो कहता,
बीमा करने में,
बहुत व्यस्त हूं,
फार्म भाभी जी को दे देना,
फिकर क्यों करते हो,
किसी दिन ले जाऊंगा,
अब बीमा कराने नहीं आऊंगा,
हम बीमा वाले,
जिसके पीछे पड़ते हैं,
अपनी हठ पूरी करते हैं,
अब तुम मेरे चक्कर लगाओगे,
तभी तो बीमा का लाभ पाओगे,
अगर तुम चले गए,
भाभी जी का घर बीमे से,
मालामाल हो जाएगा,
तब ये दोस्त तुम्हारा,
भला इंसान कहलाएगा........

ये कविता मैंने दिनांक 20.3.2017 को लिखी और कार्यालय में हिन्दी पखवाड़ा के दौरान कविता पाठ में सुनाई।

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