पहाड़ पर रहने
वाला कोई भी सज्जन मुझे पहाड़ भ्रमण के लिए बुलाए तो मेरे मन में पहाड़
घूमने की तीव्र इच्छा पैदा हो जाती है। हो भी न क्यों? पहाड़
मुझे अति प्यारे लगते हैं। उत्तराखण्ड तो
समय समय पर घूमता रहता हूं। यात्रा से लौटने पर मैं यात्रा वृत्तांत के
माध्यम से संस्मरण संजोने का प्रयास करता हूं।
मेरे समधि श्री सुरेश सिंह बिष्ट जी शिमला में मार्स इंटरनेशनल, बहुराष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ सेल्स
आफीसर हैं। काफी दिन से शिमला भ्रमण हेतु मुझे बुला रहे थे। मेरा भी मन था, क्यों न शिमला भ्रमण कर ही लूं। पहाड़ पर भ्रमण
करने से तन मन को अति शांति मिलती है।
पहाड़ पर भ्रमण हेतु अवश्य जाना चाहिए।
मन मस्तिष्क की शुद्धि पहाड़ घूमने से हो जाती है।
22-23 दिस्म्बर-2018 शनिवार, रविवार था और पच्चीस दिसम्बर को क्रिसमस का अवकाश। 24 दिसम्बर का अवकाश लिया और चार दिन की छुट्टि
का संयोग होने पर मैंने शिमला भ्रमण की तैयारी की। सर्दी का मौसम होने के कारण गरम
कपड़े रखे और 22 दिसम्बर को मैं अंतरराज्यीय बस अड्डे मोरी गेट सपत्नी
पहुंचा। बंधन में बंधने की आदत न होने के
कारण मैंने आनलाईन हिमसुता बस का टिकट नहीं बनवाया। सोचा कहीं दिल्ली के जाम में फंस गया तो बस
निकल जाएगी। भाग्य पर बिस्वास करते हुए बस
अड्डे पहुंचा, लाईन में लगा भी, लेकिन
बस बुक हो चुकी थी।
काऊंटर पर बैठे हिमाचल पथ परिवहन के
कर्मचारी मृदुल भाव से सब सूचना दे रहे थे।
उन्होंने बताया आप ऊपर जाकर 20 नंबर काऊंटर से 11 बजे सुबह जाने वाली बस का
टिकट खरीद लें। ऊपर की मंजिल पर जाकर मैंने 440 रुपये प्रति टिकट की दर से दो टिकट
खरीदी और नीचे आकर बस की इंतजार करने लगा।
10.30 पर बस आई और हम उसमें बैठ गए। ठीक 11 बजे सुबह बस ने दिल्ली से शिमला
के लिए प्रस्थान किया।
दिल्ली से दूर पहाड़ों पर जाने की
उमंग मन में बहुत थी। सोनीपत पहुंचने पर
जाम का सामना करना पड़ा। सफर जारी था,
हाईवे के अगल बगल सरसों के लहलहाते खेत, सर्वत्र
हरियालि, कहीं तालाब, कहीं होटल मोटल नजर आ
रहे थे। करनाल के बाद ड्राईवर ने एक जगह गाड़ी रोकी। अहसास हो रहा था शिमला समय पर
नहीं पहुंचेगें। कुछ समय बाद गाड़ी ने चंडीगढ़ के लिए प्रस्थान किया। अम्बाला के बाद चंडीगढ़ के निकट जीरकपुर में
फिर जाम से सामना हुआ। समधि जी फोर करके बराबर जानकारी ले रहे थे। चंडीगढ़
सैक्टर-43 बस को जाना था। हर लाल बत्ती हमें रोक रही थी। सांय के लगभग छ बज चुके
थे। समधि जी बता रहे थे आप शिमला ग्यारह
बजे से पहले नहीं पहुंच पाएगें। सैक्टर-43
से फिर बस वापस पिंजोर की तरफ लौटी। जगह
जगह जाम ने थकावट और झुंझलाहट का अहसास कराया।
लगभग
सात बजे हम परवाणु पहुंचे और ड्राईवर ने वहां पर गाड़ी में तेल भरवाया। अम्बाला, चंडीगढ़ और परवाणु में कंडक्टर ने सवारियां
भरी। सीटें नहीं थी सभी लोग खड़े थे।
सर्दी के कारण बस के सब शीशे बंद किए हुए थे जिसके कारण मुझे सिर दर्द हो
रहा था। ड्राईवार ने बीच में जलपान हेतु बस को नहीं रोका। पहाड़ शुरु हो चुका था।
रात्रि के अंधेरे में हिमाचल के पहाड़ कैसे हैं, दिखाई नहीं दे रहा था। जगह जगह भव्य होटल नजर आ रहे थे। धर्मपुर,
सोलन, कंडा घाट, कैथोली
घाट होते हुए सफर जारी था। शिमला की रोड का निर्माण युद्ध स्तर पर जारी था। पहाड़ पर पहली बार डिवाडर वाली सड़क देखी।
अहसास हो रहा था, मोदी जी के कार्यकाल में वाकई जमीनी कार्य
हो रहा था। विकास यही होता है। लोग प्रश्न करते हैं मोदी जी ने कोई विकास नहीं
किया। सफर की थकान और शिमला पहुंचने
बैचेनी मन में थी। कहीं कहीं रात्रि के अंधेरे में शिमला रेल मार्ग की झलक भी दिख
रही थी। मेरे बगल पर बैठे एक सज्जन ने मुझे सोलन के बाद शिमला की झलक दिखाई।
उन्होंने कहा मुझे कंडाघाट उतरना है। वो सज्जन कंडाघाटर पर उतर गए और मुझे बताया
अब चढ़ाई का रास्ता है और आप लगभग 11 बजे रात्रि में शिमला पहुंचेगें। समधि जी फोन पर बता रहे थे आप शिमला नयें बस
अड्डे से कमला नेहरु अस्पताल के लिए प्रीपेड टैक्सी ले लेना।
शिमला शहर के निकट पहुंचते ही बांज
के वृक्ष दिखाई दे रहे थे। ड्राईवर ने
सोलन से बस को तेज गति से चलाया और रात्रि 11.30 पर हम शिमला पहुंच गए। स्टैंड पर प्रीपेड टैक्सी के लिए पता किया तो
किराया 350/- बताया। मेरे साथ एक सज्जन
दिल्ली से आए थे। अलग सीट होने के कारण परिचय न हो सका। शिमला में मुलाकात हुई तो मैंने उनसे पूछा आपको
कहां जाना है। चलो मेरे साथ ही टैक्सी मे, जहां आपको जाना है उतर
जाना। अब हम कार में बैठ गए, उन सज्जन से बात हुई। उन्होंने
पूछा आप उत्तराखंड से हो। मैंने कहा, हां मैं उत्तराखंड से
हूं। उन सज्जन ने बताया हमारे वरिष्ठ
अधिकारी रतूड़ी जी उत्तराखंड से हैं। मैं
एस.एस.बी. में काम करता हूं। वो सज्जन अपने
गंतब्य पर उतर गए और मुझे बताया यहीं पर मेरा कमरा है। आप यहां पर मुझे मिलने आना। नाम जल्दी जल्दी में पूछा ही नहीं। मैंने सोचा अच्छा काम हुआ, एक राष्ट्र प्रहरी को मैं कुछ सहयोग कर सका। चढ़ाई का रास्ता था, गाड़ी
माल रोड की तरफ भाग रही थी। समधि जी का
फोन आया और मैंने ड्राईवर को अपना फोन देकर समधि जी से बात करने को कहा। ड्राईवर को गंतब्य स्थल का पता लग गया। 11.30 रात्रि पर मैं अस्पताल के प्रागंण में
कार से उतर गया। कुछ देर बाद समधि जी
मोबाईल की रोशनी में सीढ़ियां उतर कर आ रहे थे।
फोन पर बात होने से वे सामने दिख गए।
कुछ दूरी पर छोटा शिमला के पास, मुख्यं मंत्री आवास
के निकट हम समधि जी के आवास पर पहुंचे।
रात काफी हो चुकी थी, समधि जी ने भोजन व्यवस्था
की हुई थी। हाथ मुंह धोकर हमनें चाय पीने के बाद भोजन किया और रात्रि लगभग एक बजे
हम सफर के थके हारे सो गए। शिमला में मौसम
साफ था, हिमपात कुछ दिन पहले हुआ था। ठंड बहुत थी, समधि जी बता रहे थे यहां के मौसम का कोई भरोंसा नहीं, कब हिमपात हो जाए?
23
दिसम्बर सुबह नींद से जागने पर मैं बाहर बालकनी में गया। वहां से माल रोड वाला क्षेत्र बहुत ही सुंदर लग
रहा था । माल रोड की तरफ धूप फैली हुई थी
और हमारी तरफ धूप नहीं आई थी। देवदार के
ऊंचे ऊंचे पेडों के बीच धूप के नामात्र दर्शन हो रहे थे। हर पहाड़ पर बड़े बड़े होटल अहसास करा रहे थे, शिमला में पर्यटक बहुत आते
हैं। परवाणु से लेकर शिमला तक हर पहाड़ पर
असंख्य होटल थे। हिमाचल की राजधानी पहाड़ पर होने के कारण पर्यटन विकास की सुंदर
झलक नजर आ रही थी। उत्तराखंड को हिमाचल
प्रदेश से सबक लेकर अवश्य ही पर्यटन का विकास करना चाहिए। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में ने होकर पहाड़
पर होती तो हिमाचल जैसा विकास नजर आता।
शिमला भ्रमण के दौरान मैंने देखा, यहां उत्तराखंड की
तरह असंख्य जल धाराएं नजर नहीं आ रही थी।
प्रश्न था, पेयजल की व्यवस्था इतनी बड़ी आवादी के लिए
कैसे की जाती होगी? जल ही जीवन है, इसका
मतलब हुआ, पेयजल की सुचारु व्यवस्था जरुर है।
सुबह नहा धोकर नाश्ता करने के बाद समधि जी और पत्नी सहित मैं माल रोड की तरफ
भ्रमण पर गया।
एक जगह सुमित्रानंदन पंत जी की कविता की दो लाईन बोर्ड पर लिखि हुई थी और
उसके ऊपर पत्थरों की सीलेट से छत सी बनाई हुई थी। आगे बढ़ते हुए मैंने देखा, रोड बिल्कुल साफ सुथरी
थी। धूम्रपाल वर्जित क्षेत्र होने के कारण
कोई भी धूम्रपान नहीं कर रहा था। पर्यटक शिमला नगरी को दिल्ली की तरह कूड़ामय नहीं
बना रहे थे। स्वच्छ भारत अभियान की झलक
शिमला में देख मेरा कविमन बहुत खुश हुआ। चर्च के पास बहुत बड़ा मैदान था। वहां पर पर्यटकों की भारी भीड़ थी। कुछ पर्यटक घोड़े पर बैठकर भ्रमण कर रहे
थे। शिमला के पहाड़ की चोटी पर जाखू मंदिर
है। वहां पर हनुमान जी की विशाल मूर्ति
नजर आ रही थी। अहसास हो रहा था हनुमान जी
संपूर्ण शिमला को निहार रहे हैं। मैदान में
कुछ देर बाद झंडा रोहण हुआ और तिरंगा शान से लहराने लगा। सर्दियों में पयर्टक शिमला में हिमपात का आनंद
लेने जाते हैं। इस बार ऐसा नहीं हुआ। शिमला आते वक्त बहुत सी गाड़ियां दिखी। लग रहा था क्रिसमस पर पर्यटक बहुत आ रहे हैं। शिमला के बाजार में घूमने का मौका मिला। वहां भी साफ सुथरा माहौल था। पहाड़ पर ढ़ालनुमा
छतें ही बनानी चाहिए जिससे पहाड़ का परिदृष्य सुंदर नजर आता है। इस बात का शिमला नगरी में खास ध्यान दिया गया
है। अंग्रेजों ने वहां पर जो भी निमार्ण
किया उसमें स्थानीय पत्थरों को तराश कर लगाया गया है। हिमाचल भवन शैली का समावेश
भी भवनों में नजर आ रहा था।
घर के लिए कुछ खाने पीने की जरुरी
वस्तुएं खरीदने के बाद हम आवास स्थल पर आ गए।
उस ओर भारी ठंड थी, चाय पीकर हम ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे। सांय का अंधेरा होने लगा था। पता ही नहीं चला कब दिन कट गया। दूर दूर तक जगमगाती रोशनी में शिमला बहुत ही
सुंदर लग रहा था। पत्नी हमारे लिए भोजन
व्यवस्था में व्यस्त थी और हम विस्तर के अंदर दुबक गए। भोजन का दौर चला और बिस्तर के अंदर घुसने के
बाद तुरंत ही नींद के आगोश में समा गए।
24
दिसम्बर सुबह उठने के बाद हमनें नहाना धोना किया।
उसके बाद चाय नाश्ता किया। समधि जी
अपने कार्यालय के काम पर लैपटाप पर व्यस्त थे।
ठंड हड्डियों में चुभ रही थी। रजाई
के अंदर दुबक रहने में ही भलाई लगी। लगभग
एक बजे समधि जी अपने काम से कार्य क्षेत्र में चले गए और मैं सपत्नी फिर माल रोड
की तरफ भ्रमण करते हुए चल दिया। पत्नी कह
रही थी पोता पोती के लिए कुछ वस्त्र लेने हैं।
मैं कह रहा था यहां मंहगाई बहुत है इसलिए दिल्ली में ही ले लेगें। पत्नी कह रही थी शिमला से हम क्या ले जाएगें
उनके लिए, यादगार
खरीद जरुरी है। बाजार में हमनें तीनों
पोता पोती के लिए जैकेट खरीदी। संध्या का
समय होने को था, घर के लिए कुछ खाद्य सामग्री करने के बाद हम
आवास पर लौट आए। कुछ समय बाद समधि जी भी
लौट आए। 25 दिसम्बर सुबह दिल्ली के लिए
प्रस्थान करना था। दूर के सफर की चिंता मन
में थी। रात्रि भोजन करने के बाद हम सो
गए।
सुबह नींद जल्दी टूट गई। नहा धोकर मैं तैयार हुआ। नयें बस स्टेशन जाने के लिए वाहन व्यवस्था
जरुरी थी। ओला बुक करने का प्रयास किया पर
सफल नहीं हुए। मैंने समधि जी को कहा
अस्पताल के पास चलते हैं वहां से जरुर कोई गाड़ी मिल जाएगी। जब हम अस्पताल से नीचे पहुंचे तो एक कार वाला
दिखा। उसे हाथ से इशारा किया और वो रुक
गया। उसने किराया तीन सौ रुपया बताया और
हम गाड़ी में बैठक कर अंतराज्यीय बस अड्डा की ओर चल दिए। पहाड़ पर छोटी सड़क थी। लगभग नौ बजे हम बस अडडे
पहुंचे। दिल्ली के लिए हिमाचल पथ परिवहन
की बस हिम मणि लगी हुई थी। संयोग से उसमें
दो सीट उपलब्ध थी, कंडक्टर ने हमें सीट बताई और हम बैठ गए।
9.10 सुबह गाड़ी ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। दिन के उजाले में मैं देख रहा था, जगह जगह होटल, सड़क के साथ लुका छिपी करती रेल लाईन,
शिमला के लिए बन रही सुंदर सड़क।
जब हमारी बस परवाणु पहुंची तो शहर से पहले बाईपास से होते हुए पिंजौर के
लिए मुड़ गई। बस को चंडीगढ़ नहीं जाना था
फिर भी एक सवारी को छोड़ने के लिए बस चंडीगढ़ सीमा पर पहुंची और जीरकपुर के लिए
मुड़ गई। सड़क पर अब यातायात बहुत था और
हमारी गाड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी। लगभग चार बजे घरौंदा पानीपत के पास हमारी
गाड़ी एक रेस्टोरेंट पर रुकी। सामने हाईवे
पर पाकिस्तान से आती हुई एक बस सुरक्षा घेरे में दिल्ली की ओर भाग रही थी।
बस ने कुछ समय बाद दिल्ली के लिए
प्रस्थान किया। यातायात बहुत बढ़ चुका
था। फिर भी बस ड्राईवर बस को तेज गति से
भगाने का प्रयास कर रहा थ। सिंधु बार्डर
से बाईपास तक बस की गति को भीड़ होने के कारण रेंगकर चलना पड़ा। बाईपास के बाद बुराड़ी के निकट ड्राईवर ने
गाड़ी रोकी और कंडक्टर सहित नीचे उतर गया।
समझ में नहीं आ रहा था क्या बात है।
अब बाहर से दूसरा ड्राईवर कंडक्टर आया और अब हम उनके कब्जे में बस सहित थे। नौ बजे रात्रि बस ने शिमला के लिए लौटना
था। नया ड्राईवर पहले वाले से कुछ तेज लग
रहा था। जल्दी ही हमारी बस महाराणा प्रताप
अंतराज्यीय बस अडडे के सामने पहुंची और हमारा सफर पूरा हुआ।
हिमाचल इतना विकसित क्यों? मेरे कविमन में जिज्ञासा
थी। खोज करने पर मुझे पता चला, डा. यशवंत परमार हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने कृषि बागवानी, पर्यटन,
स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी कार्य किया। पहाड़ के लिए सड़क भाग्य रेखा होती हैं,
ये उनका कहना था।
मुख्यमंत्री होते हुए वे साधारण बसों में सफर करते थे और जनता से नजदीकी
बनाकर कार्य करते थे। उत्तराखंड राज्य बने
हुए 18 साल हो गए पर पलायन जारी है। राज्य
तो इसलिए बनवाया था कि उत्तराखंड के खेत खलिहान और गांव संपन्न हों। नेता और अधिकारी पलायन रोकने के लिए ऐसा प्रयास
करते नहीं दिख रहे, पहाड़ से पलायन रुके और हिमाचल प्रदेश की
तरह संपन्न बने। शिमला भ्रमण के दौरान मैंने देखा, वहां
उत्तराखंड की तरह असंख्य बहती हुई जलधाराएं नहीं थी। उत्तराखंड में जल की प्रचुरता
होते हुए उसका सदुपयोग नहीं हो पा रहा है।
इंतजार है कब हम प्रवास से अपने पहाड़ लौटें और हमारे गांव आवाद हों। निराशा कोई समाधान नहीं है, आशा करता हूं एक दिन हमारा उत्तराखंड भी हिमाचल प्रदेश की तरह समृद्ध और
संपन्न हो।
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
दिनांक 26/12/2018
दूरभाष: 9654972366
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