जीवनदायिनी अलकनन्दा,
अल्कापुरी से आती है,
निर्मल है जल जिसका,
किनारों
से टकाराती है।
चार
प्रयाग में चार नदियां,
अलकनन्दा
में समाती हैं,
हो
जाती हैं अस्तित्वहीन,
अलकनन्दा
का बहाव बढ़ाती हैं।
सागर
मिलन की आस में,
अलकनन्दा
आतुर हो जाती है,
पथ
पर आते जो भी पत्थर,
ओट
में उनसे बतियाती है।
कल-कल बहती पथ पर अपने
देवप्रयाग
तक आती है,
भागीरथी
से मिलन करके,
फिर गंगा कहलाती है....
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
25/01/25/01/2019

No comments:
Post a Comment