धोनी के धुरंदरों ने,
वर्ड कप-२०११ जीतकर,
करना है धूम धड़ाका,
बजाना है डंका,
ऐसी है आस,
हर हिन्दुस्तानी के,
मन मस्तिष्क में.
जरूर जीतेंगे,
मंजिल पास है,
क्या करवट लेगा,
समय चक्र उस दिन,
फैसला शायद,
प्रभु के हाथ है.
लेकिन! इरादे उनके भी,
कम नहीं होंगे,
हिंदुस्तान की धरती पर,
हिंदुस्तान को हराना,
परचम लहराना,
कह रहे होंगे वो,
अगर "लूटनी है लंका"?
हमसे भिड़कर लूटो.
(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ३१.३.११)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, March 31, 2011
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