Wednesday, April 6, 2011

"निर्भागी"

जैका भाग मा,
सदानि टोटग ऊताणि,
क्या बोन्न,
कखन होण खाणी बाणी,
तर्स्युं-तर्स्युं सी रन्दु,
वेकु पापी पराणि......

हरेक मनखि कू,
होंदु छ अपणु-अपणु भाग,
चल्दि छ जिंदगी,
क्वी ह्वै जांदु भग्यान,
कैकु ऐ जांदु निर्भाग.....

भलु भाग जू नि ल्ह्यौंदु,
मांगिक अपणा दगड़ा,
वेकु जीवन ह्वै जांदु,
जन रगड़ा भगड़ा,
"निर्भागि" का रूप मा,
जैका आँखौं मा सदानि आंसू....
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ६.४.२०११'
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)

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