Monday, May 27, 2013

"जडों से दूर"


जुदा होकर हम,
पंख लगाकर उड़ चले,
कुछ पाने की चाह में,
आंखे मूंदकर,
उड़ने की गति,
इतनी तीव्र,
दिशा भी भूल गए,
हमारा विकास तो हुआ,
नतीजे सुखद नहीं,
पाया कम,
और खोया ज्यादा।

मन में एक पीड़ा,
ऐसी रहती है,
जो बार बार,
याद दिलाती है,
अपनी जड़ों की,
और मन में,
लौटने की चाह भी,
पैदा करती है।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, 27.5.13

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