Thursday, October 10, 2013

"गढ़वाळि कविता"

नि लिखेणि छन अजग्‍याल मैं सी,
यनु लगणु छ जनु ढौंडा पड़िगी भैंसि,
मन मा उठणि बौळ सी,
औणि छ बौळया, धुंधकारी जी की याद,
लिखणु छौं आज, भैात दिनु का बाद,
मैं यनु भि लगणु छ मेरु कविमन,
पहाड़ की काखड़ी मुंगरी की खोज मा,
कखि प्‍यारा पहाड़ त नि चलिगि,
पर मैकु त सच मा उत्‍पात करिगि,
मेरा कवि दगड़्यौं अब रस्‍ता एक हिछ,
कखि गढ़वाळ मा बाक्‍की मू जावा,
किलै नि लिखेणि छन गढ़वाळि कविता,
यांकु स्‍यूंत भेद जरुर लगावा.......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
7.10.2013
 

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