Monday, January 23, 2017

अपणु प्यारु गौं.....




भौत याद औन्दु छ,
मन मा कुतग्याळि लगौन्दु छ,
जब गौं मा बितैयुं बाळुपन,
अपणि याद दिलौन्दु छ.....

सुबेर ऊठिक,
हात मुक्क ध्वोन्दा,
द्वी बंठा पाणी का ल्हौन्दा,
अपणि पुंगड़्यौं मा हौळ लगौन्दा,
तब स्कूल कू तैयार ह्वोन्दा,
ब्वे की बणैयीं रोठ्ठी खैक,
चला दगड़्यौं स्कूल,
जोर करिक भट्यौन्दा,
सब्बि दगड़्या कठ्ठा ह्वोन्दा.....

स्कूल की घंटी बज्दि,
स्कूल की ऊकाळ जथैं,
धमा धम्म हिटदा,
स्कूल पौंछिक बस्ता,
कलास मा रखिक,
प्रार्थना मा शामिल ह्वोन्दा,
दिन भर गुरजी हम्तैं,
हर घंटी मा पाठ पढ़ौन्दा,
हम पढ़ै फर मन लगौन्दा,
छुट्टी की घंटी बज्दि,
उद्यारि का बाटा दनकिक,
अपणा घौर औन्दा,
ब्वे की रखिं झंगोरे की फड़की,
दाळ दगड़ि खूब खान्दा....

गौं मा मण्डाण लग्दा,
ब्यो भंत्तर ह्वोन्दा,
कौथिग उरेन्दा, बुरांस खिल्दा,
ऊलार की गंगा खूब बग्दि थै,
अपणा प्यारा गौं मा..... 
24/1/17 रचना: 1057

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