दुकानदार के चूल्हे पर,
जलती आग पर बैठी,
यौवन रस पिलाती सबको,
मुंह उठाकर ऐंठी।
एक पथिक बहुत दूर से,
नैखरी, चंद्रवदनी आया,
बहुत थका हूं चाय पिलाओ,
दुकानदार को बताया।
देख पथिक को केतली,
मन ही मन मुस्कराई,
यौवन रस पिया पथिक नें,
थकान दूर भगाई।
केतली और चाय का,
बहुत समय से नाता है,
चाय पर चर्चा करते लोग,
केतली को भाता है।
केतली कहती है सभी को,
सबको मेरा स्वागत भाव,
यौवन रस पिलाती हूं,
किसी से नहीं भेद भाव।
एक समय ऐसा था,
न केतली थी न चाय,
आज केतली की धूम है,
जिसके बिना रहा न जाय।
जगमोहन सिंह
जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 05/11/2019
No comments:
Post a Comment