Wednesday, May 4, 2022

पहाड़

 


 जब घुमण कु मन करदु,

हम त्येरा धोरा औन्दा छौं,

रौंत्याळि डांडी हिंवाळि कांठ्यौं द्येखि,

मन सी अति खुश ह्वन्दा छौं।

 

गैरी गैरी घाटी ऊंचि कांठी,

सुणेन्दु पोथ्लों कु चुंच्याट,

गाड गदन्यौं मा बग्दु पाणी,

घट्वाळा भैजि का घट्ट मा ठाट।

 

दूर कखि कै गौं मा जब बजदन,

हमारा पारंपरिक ढ़ोल दमौं,

ऊलार सी छै जान्दु मन मा,

ज्यु करदु झट्ट वखि पौंछि जौं।

 

बणु मा लाल बुरांस दिखेन्दा,

मुल मुल हैंस्दि हिंवाळि कांठी,

दूर बिटि देख्दा छौं जब हम,

पहाड़ की पैरिं सुखिलि ठांटी।

 

पर्यटक औन्दा त्वे द्यखण,

कूड़ा फुळेक करदा नखरु काम,

पर्यावरण प्रदूषित भि ह्वन्दु,

जै फर लग्युं चैन्दु विराम।

 

स्वर्ग छ पहाड़ हमारु,

जख छन द्यव्तौं का धाम,

पंच भै पंडौं ऐन जैं धर्ति मा,

पहाड़ मा ऐन प्रभु श्रीराम।

 

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना-1729

दिनांक 26/11/2021

दूरभाष: 9654972366

नई दिल्ली

सांची पत्रिका में प्रकाशित 

2 comments:

  1. हमरि पहाड़ा कि बात ही कुछ और च, मज़बूरी च हम लोगों कि परदेश म रहणा छौ जो
    भौत अच्छि रचना

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