Wednesday, May 4, 2022

बुरांस,फ्यौंलि,पहाड़, हमारी भाषा (गढ़वाळि कविता)

 

बौळ्या बुरांस

 

हिंवाळि कांठ्यौं हेरि,

रितु बसंत मा,

मुल-मुल हैंस्दु ,

पाड़ की पछाण ,

बौळ्या बुरांस,

जु हरा बणु मा,

 बणांग सी लगौन्दु,

अपणा रंग रुप कु,

ऐसास करौन्दु।

 


फ्यौंलि


रितु बसंत औण सी पैलि,

उत्तराखण्ड जान्दि,

पाखौं फुंड हैंस्दि ,

कुतग्याळि सी लगान्दि,

पिंगळा रंग मा रंगिक,

ब्यौलि सी बणि जान्दि,

हमारी संस्कृति मा,

रचिं बसिं फ्यौंलि,

फुलार्यौं की प्यारी,

जैंकी महिमा न्यारी।

 


पहाड़

 

रौंत्याळु अति भारी,

संग्ता फैलीं हर्याळि,

पीठ मा जैकी खड़ी,

देवदार-कुळैं की डाळि,

पाड़ा श्रृंगारा खातिर,

हमारा पित्रुन पाळि,

सीना ताणिक खड़ा पहाड़,

कतै निछन जाळी जंजाळि,

पहाड़ हमारु मुल्क,

हम छौं उत्तराखण्डी,

जौनसारी,कुमाऊनि, गढ़वाळि।

 

 

हमारी भाषा

 

ज्यु पराण सी प्यारी,

गढ़वाळि,कुमाऊंनि, जौनसारी,

मान करा दौं मन सी,

ज्व ब्वन्न बच्यौंण मा न्यारी,

ऐसास करौन्दि अपणापन कु,

मन का भाव बिगौन्दि,

गीत बणिक सदा हम्तैं,

ढ़ोल-दमौं मा नचौन्दि,

भाषा कु श्रृंगार हो,

कवि जिज्ञासू की जिज्ञासा,

अलंकारिक समृध्द छन,

हमारी उत्तराखण्डी भाषा।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

मार्च-2023

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