एक पीढ़ी
ने अपना,
बचपन
यूं बिताया,
काम होता
था बहुत,
चैन कम हि पाया।
बंठा लेकर धारे पर,
पानी के लिए जाना,
फिर अपने
खेतों में,
बैलों से हल लगाना।
गांव से बहुत दूर,
प्राईमरी स्कूल
जाना,
मिट्टी पाटी
में फैलाकर,
अक्षर ज्ञान
पाना।
सूती फटे कपड़ों पर,
टल्ले लगाकर
पहनना,
मन में कोई मलाल
नहीं,
सादगी से रहना।
बिजली नहीं
थी तब,
लैम्प जलाकर
पढ़ना,
किताबों
को मन से ,
जी भरकर
रटना।
अगेले से आग जला कर,
चूल्हे जलाए जाते थे,
अगल बगल के परिवार,
आग ले जाते थे।
पगडंडियों पर पैदल ही,
दूर
दूर तक जाना,
नयें
कपड़े पहनकर,
बहुत खुश हो जाना।
ब्यो भंत्तर जब होते,
गांव में रौनक बढ़ जाना,
परदेस से नौकर्याळों का,
बहुत दिनों बाद आना।
सामूहिक श्रमदान करके,
हर काम में हाथ बंटाना,
प्रेम बहुत था आपस में,
सुख दुख में काम आना।
पैसा बहुत
दुर्लभ था,
मन में नहीं कोई मलाल,
“बचपन में पहाड़”
ऐसा था,
मनख्वात थी हमारे गढ़वाल।
जगमोहन
सिंह
जयाड़ा
“जिज्ञासू”
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी: चन्द्रवदनी,
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
दूरभाष: 9654972366, 22.12.22
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