Tuesday, December 21, 2010

"ब्वै बोन्नि छ"

सुण हे बेटा टक्क लगैक,
मेरा मन की बात,
ज्यु कन्नु छ आज मेरु,
खलैदि जरादूध भात...

तू छैं मेरा मन कू प्यारू,
ब्वारि देन्दि गाळी,
आज सोच्दु छौं मैं,
कनुकै मैंन तू पाळी.....

वे जमाना होन्दि थै बेटा,
मेरी भारी कुहालि,
टरकणि थै सब्बि धाणी की,
खान्दा था कौणी कडाँळी.....

बुढेन्दि बग्त बेटा,
कर तू मेरी सेवा,
होणि-खाणि भलि होलि,
मिलला त्वैकु मेवा.....

दरद्याळु होन्दु छ,
ब्वै कू पापी पराण,
मन सी सेवा करिं चैन्दि,
वींकू मन नि दुखौण......

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: २१.१२.२०१०
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/board,3.0.html

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