Thursday, February 17, 2011

"बसंत" (मौळ्यार)

अयुं होलु हमारा मुल्क,
बौळ्या बणिक,
छयुं होलु डाँडी-काँठ्यौं मा,
होलि ब्वै बाटु हेन्नि,
कब आलु नौनु मेरु,
खेल कौथिग आला,
फ्योंलि, बुरांश का फूल,
वैका मयाळु मन तैं,
मुल-मुल हैंसिक रिझाला.

बौळ्या बसंत की बयार,
हेरि-हेरिक मन मा,
पैदा होन्दु छ,
मुल्क का मनख्यौं का,
मयाळु मन मा ऊलार.

पय्याँ-आरू होला फूल्याँ,
पाख्यौं मा होलि हैंसणि,
फ्योंलि मुल-मुल,
डाँडी-काँठ्यौं की होलि,
मुंड मा पैरीं,
ह्यूं अर हर्याळि,
होलि ब्वै बैठीं छज्जा मा,
हमारी प्यारी डिंडाळि,
खुदेड़ ऋतु "बसंत" मा

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: १६.२.२०११
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)

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