Thursday, April 12, 2012

"अवा लो भात खाण"

याद औणि छ,
अर खुदेणु छ पराण,
जब हमारा गौं मा,
ब्यो बारात शुभ काम,
बणौंदा था सरोळा जी,
भड्डू फर दाळ,
तौला फर भात,
बैठदा था,
लंगट्यार लगैक,
चौक या पुंगड़ा मा,
मेरा गौं का मनखी,
तब खांदा था,
माळु का पात मा,
सरोळा जी हाथ कू परोस्युं,
तौला कू भात,
अर लड़बड़ी दाळ,
जैमा भूटिं मर्च,
सवादि घर्या घ्यू,
कख लगौण,
क्या बतौण,
कख गैन आज ऊ दिन,
जब भट्योंदा था,
"अवा लो भात खाण".....
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: १२.४.२०१२

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