Friday, April 13, 2012

"चला लो आग बुझौण"

अतीत मा,
जब लगदि थै बणाँग,
जख घनघोर जंगळ,
उत्तराखण्ड का डांडौं मा,
तब भटेन्दा था,
गौं का मनखी,
किलैकि ऊबरि पर्वतजन,
भौत प्यार करदा था,
जंगळ, बण बूट सी,
एक भावनात्मक,
रिश्ता का कारण,
आज भी पर्वतजन,
सहयोग करदा छन,
आज जंगळ जळ्दा छन,
थोड़ा बद्लिगी पर्वतजन,
जंगळ छन सरकारी,
फिर क्या जिम्मेदारी,
चौकीदार छन पतरोळ,
जनु भी करला,
छाळ छछोळ,
पर जरूरत आज भि छ,
"चला लो आग बुझौण".
रचनाकार-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: १३.४.२०१२
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521&type=1

1 comment:

  1. भौत ही भली रचना। आज लुगोँ तेँ आज लगदु की युँ बण सरकारी छन पर युँ बण हमारा ही काम आण्दा।
    http://garhwalikavita.blogspot.in

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