Thursday, July 5, 2012

"बसगाळ बोडा! अब त ऐजा"

कवि-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
 (दिल वालों की दिल्ली से)
क्यौकु चुप्प चाण्या छैं,
भारी भक्कु  लगण लग्युं ,
ऐंसु हमारा मुल्क का मनख्यौं,
कब  बौड़िक ऐल्या तुम,
नजर लगिं छ तुम फर,
तब ऐल्या जब भारी बिति जालि?
हमारा ज्यु पराण फर,
वन भी लोग पाणी का बिना,
तरसेणा छन,
भक्कान भभसेणा छन,
पाणी मिलु न मिलु,
अपणा गौळा तर्र कन्न का खातिर,
हाथन व्हिस्की, रम अर बियर,
पहाड़ का शैर अर बाजार मा,
जन पौड़ी, श्रीनगर, नै टीरी,
वे नेतौं का प्यारा देरादूण,
क्या ब्य्खना क्या सुबेर,
देखां लुकां ढंका पेणा छन,
झट्ट बौड़िक अवा,
हे !बसगाळ बोडा जी,
अब त बिंगा आप,
लोग गाळी भी देणा छन,
कनु मुर्दा मरि ये दयोरा कू, 
कब होलि बरखा?
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित ५.७.१२)  
 माननीय भीष्म कुकरेती जी की रचना 'मानसून अ दगड मुखसौड़' पढिक मेरा मन मा या अनुभूति कविता का रूप मा.

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