Friday, June 15, 2012

"सोचा! मनखि माटु छ"


ऊकाळ ऊद्यार जनि जिंदगी मा,
मनखि शहर कू रैबासी ह्वैगी,
भूलिगि अतीत आज अपणु,
बनावटी जिंदगी जीण लगि,
छी छी करदु छ माटु देखि,
सोच्दु निछ मैं माटु छौं,
भूलिगी आज सब्बि धाणि,
अपणु मुल्क अर घर गौं,
अहंकार मन मा छ,
सब्बि धाणि होयुं छ पैंसा,
दूध घ्यू चैंदु छकि छक्किक,
पाळ्दु निछ  गोरु भैंसा,
अपणा मन मा सोच्दु,
मैं छौं दुनिया कू बड़ु इंसान,
बिस्वास नि करदु,
क्या सच मा छ भगवान,
जू बिंगदु छ  क्या छ सच,
जीवन भर हिटदु सुबाटु,
वे क्या समझौण बल,
बिंगदु मनखि छ माटु.....
रचियता: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )

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