Wednesday, October 3, 2012

"अस्सी साल कू सौण्या सिंह"

दादीजिन धरि थौ नौं,
किलैकि सौण का मैना,
जल्म लिनि थौ वैन,
बुबा जी का चौथा ब्यो कू,
यानि रिखुली कू नौनु,
पैदा भी तब ह्वै,
जब रिखुलिन खड़ा द्यू दिनिन,
श्रीनगर कमलेश्वर महादेव जी मू,
बैंकुठ चतर्दशी का दिन,
जबरी बग्वाळ औन्दिन,
प्यारा पहाड़ मा......

बुबा जी की छान थै झनौ,
चन्द्रबदनी मंदिर का नजिक,
जख द्वी बिसी भैंसा,
दस बिसी बाखरा,
द्वी जोड़ी माळ्या बळ्द,
दूध घ्यू की गंगा,
सौण्या की मौज ही मौज,
वैका दगड़्या स्कूल गैन,
वैन दिन भर गोरू चरैन,
कबरी वैन स्कूल जाण की,
औड़ भि लगायी,
वैका बुबाजिन बोलि,
कतै नि जाण स्कूल,
तेरी मति मरिगि?

सौण्या का दगड़्या,
पड़ि लिखिक,
दूर देश परदेश गैन,
जान्दा ह्वैन पर फेर,
बौड़िक कम ही ऐन,
देखा देखि सौण्यान भि,
अपणा नौना खूब पड़ैन,
बतौंदा छन बल सब्बि,
जापान, जर्मनी गैन,
आज सैडा गौं मा,
गणति का मनखि रैगिन,
बोला गौं बंजेणु छ,
पाड़ी पाड़ छोड़िक,
होणी खाणी का खातिर,
परदेश मा रचि बसिग्यन....

सौण्या कू आज,
लेंटरदार मकान छ,
चौक मा गोरू भैंसा निछन,
कलर टीवी अर डिश छ,
द्वी झणा जापान जर्मनी,
नौनौ दगड़ि घूमिक ऐगिन,
दुःख यु हिछ,
पाड़ सी पाड़ी,
बल गायब होणा छन,
बदलाव होणु छ,
"अस्सी साल कू सौण्या सिंह"
अपणा आँखौन देखणु छ......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित ३.१०.२०१२

मेरा दगड़्या श्री जयप्रकाश पंवार "प्रकाश" "जेपी" भाई कू
"पहाड़नामा" का अंतर्गत "युगवाणी" मा लेख छप्युं छ,
उत्तराखंड सी पहाड़ गायब, पहाड़ सी पहाड़ी गायब....कविता रूप मा प्रतिक्रिया स्वरुप मेरी अनुभूति...
इस कविता को लिखने के तुरंत बात मुझे जेपी भाई का सन्देश मिला मुझे छत्तीसगढ़ में दिल का दौरा पड़ा है इलाज के बाद देहरादून में हूँ. बहुत दुख हुआ जानकार, लेकिन जीवनयात्रा में इंसान के साथ सुख दुःख आता है, जटिल जीवन जो ठहरा..कुलदेवी माँ चन्द्रबदनी का ह्रदय से आभार मेरा मित्र स्वास्थय लाभ पा चुके हैं.

  • Jot Singh Chand ati sunder bhi sahab

  • Parashar Gaur bhai jee padi nae de raha hai .. mafee

  • Rakesh Kundlia Bhai sahab aap to aaku mai aasu laa detai ho kabhi kabhi mijko to badi atma gilna hoti hai ki yai paapi pait kai katir ham ess narak mai hai nahi to apnni deve bhoomi mai janai kai baad to wapas anai kaa maan nahi karta bhai sahib\

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