Wednesday, August 20, 2014

एक दिन भैजी...

एक दिन भैजी,
या धरती छोड़िक,
हम्न चलि जाण,
याद रखणु,
यी जिंदगी मा,
नि मान्नु पापी पराण.....
-कवि जिज्ञासु की कलम कू
कबलाट....4.7.2014
त्वैटकु तेरा सौं छन भैजि,
ह्वै सकु त ऐजै,
त्वै कु आम रख्यां मेरा,
हे चुचा तू खैजै......
दगड़यौं मेरा,
झटट आवा,
अपणा बांठा का,
तुम भी खावा....
बाटु बतौंदु,
अपणा गौं कू,
वख फुंड तुम ऐजा,
आम पक्यां छन,
बाटा बाटी तुम ऐजा.....
-कविमन कू कबलाट.....कवि ज्‍िाज्ञासु
3.7.14
सुपिना मा....
आम खाण का बाना,
भेळ ऊद लमड्यौं मैं,
निंद बिजि देखि त,
ढिक्यािण पेट पड़युं छौं....
-कवि जिज्ञासु का कविमन कू कबलाट
1.7.14
मेरा कविमन कू कबलाट.....
बोडि बोल्दिक थै,
मेरा न घ्यू कब्बि, नि खाई,
किलै नि खाणु छैं,
जब जब पूछि,
वेन बताई,
घ्यू मैं इलै नि खांदु,
कब आलि ताकत खैक,
दारु पेवा त,
मैं धम्मा धम्म,
हिटदु ऊकाळ.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु, 30.6.14
मेरा कविमन कू कबलाट....
ढुंगु होन्दुू लठग्यु रन्दु ,
धार खाळ मा,
कसम तेरा हे दगड़या,
फंसिग्यौं ज्यु, जिबाळ मा....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
30.6.14
"मायाजाळ मा फंस्युं "
भांडु नि भरेन्दुं भुला,
पैंसा पातन,
मनखि मायाजाळ मा फंस्युं,
अपणा हातन.....
-कवि जिज्ञासु की अनुभूति, 27.6.14
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