Tuesday, November 11, 2014

दादा अर नाती...


हात मा ह्वक्‍का धरयुं दादा कू,
खुग्‍लि फर बैठ्युं नाती,
साज वैन भ्‍वीं धोळ्यालि,
नाती छ भारी उत्‍पाती....

बोडाजिन झटट साज उठैक,
नाती की मुंडळी फलोसी,
तेरु दोष क्‍या छ रे नाती,
मैं ही छौं भारी दोषी...

खित खित हैंसणु नाती अफुमा,
हबरि कौंताळ मचौणु,
प्रिय नाती का पुळ्याट मा,
दादा खुश छ होणु.....

याद करा ऊ दिन आप भी,
जू दादा जी दगड़ि  बितैन,
दादा जी आज स्‍वर्गवासी,
अहा! कख ऊ दिन गैन....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
स्वरचित कविता, सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 11.11.2014.

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