Monday, November 3, 2014

पर्वतराज हिमालय...


जिसे निहारा मैंने,
बचपन से,
जब जब गया,
चन्‍द्रकूट पर्वत शिखर पर,
मां चन्‍द्रबदनी मंदिर में,
अहसास किया,
हंसता हैं हिमालय,
हमें निहार कर....

आवाज उठ रही है,
हिमालय बचाओ,
ऐसा क्‍या हो गया?
संवेदनशील हिमालय को,
जो आज आशंकित हैं,
हिमालयी क्षेत्र के लोग....

सुनते हैं,
कीड़ा जड़ी के लिए,
लालची लोग,
ग्‍लेशियर को जबरदस्‍ती,
पिघला रहे हैं,
कहो तो,
संवेदनशील हिमालय को,
सता रहे हैं.....

हिमालयी क्षेत्र के लोग,
हिमालय को,
शिव पार्वती का,
निवास मानकर,
जो है भी,
पूजते हैं,
पास होते हुए भी,
नहीं सताते उसको.....

कौन जाता है,
हिमालय के पास,
पर्यटक बनकर,
मानते हैं,
सबका है हिमालय,
कूड़ा घर है क्‍या,
ऐसा क्‍यों करते हैं?
चिंतन करें,
हिमालय के पास,
एक पेड़ लगाते,
कूड़ा साथ लाते,
मूक हैं सभी,
हिसाब लगता है,
कितने आए,
कितने कमाए,
ये भी तो सोचो,
हंसने वाला हिमालय,
आंसू टपका रहा है.....

पर्वतजन का पहाड़,
सूना है आज,
सूने सूने गांव,
टूटते घर,
बंजर होते खेत,
ऐसा हो गया है,
हिमालयी क्षेत्र में,
कुछ मित्रों ने,
सैकड़ों मील पैदल चलकर,
जानने की कोशिश की,
हिमालय बचाओ,
अभियान के तहत,
पर्वतजन और हिमालय,
क्‍यों हैं संकट में?
भागीदार बनें,
संदेह न करें......

माधो सिंह भण्‍डारी जी के,
पुरातन गांव,
मलेथा  के लोग,
सजग हैं,
और दिखा दिया,
ऐसे ही तो बचाना है,
पहाड़ और हिमालय के,
अस्‍तित्‍व को......

पर्वतराज हिमालय,
अस्‍तित्‍व में रहेगा,
हंसता रहेगा,
हमारा भी,
अस्‍तित्‍व रहेगा,
जागो! जागो!
कहीं अबेर न हो जाए,
हिमालय से बहती,
सदानीरा नदियां,
कहां से दिखेगी्ं?
आने वाली पीढ़ी को......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
  "हिमालय बचाओ अभियान" को समर्पित  मेरी  ये स्‍वरचित कविता सप्रेम भेंट।
  दिनांक 3.10.2014.
 

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