Thursday, November 13, 2014

तेरा गौं कू नौं.....


क्‍या छ भुला अर कख छ भुला,
झट्ट बतौं तू मेरा सौं,
टिहरी जिल्‍ला मा छ मेरु,
पराण सी प्‍यारु बागी नौसा गौं....


मैं भी पहाड़ कू मनखि छौं,
जख छन हिंवाळि डांडी कांठी,
मनख्‍यौं मा भारी  प्रेम जख,
तिल की दाणी भी खांदा बांटी...

भुला बतौणु सुणा हे भैजि,
खासपट्टी की एक उंचि धार मा,
पराण सी प्‍यारु  मेरु गौं,
सुबेर उठि चंद्रबदनी मंदिर दिखेन्‍दु,
सच बोन्‍नु छाैं मेरा सौं.....

पछाण्‍ना निछन भैजि तुम,
तुमारी हि जाति कू छौं मैं,
मेरु प्‍यारु गौं छ पबेला,
भारी खुशी होलि मैकु,
जू आप मेरा गौं ऐल्‍या......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
स्‍वरचित कविता एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
,
दिनांक: 13.11.14

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल