Friday, November 13, 2015

दूधबोली भाषा....


कवि की कुटि मा रिटणि रन्‍दि,
कवि की दूधबोली भाषा,
बौळ लगौन्‍दि कवि का मन मा,
दूर भगौन्‍दि निरासा......

राज करदि कवि मा मन मा,
कवितौं कू जल्‍म करौन्‍दि,
रैबारु होन्‍दि छन वींकी,
भाषा प्रेम जगौन्‍दि.....

नौट कमैक मनखि बणि जांदा,
जिंदगी भर धन जग्‍वाळा,
श्रृंगार कर्ता दूधबोली का,
होन्‍दन भाषा प्रेम रखण वाळा....

कामना करदु मन कलम सी,
कवि की होन्‍दि अभिलाषा,
जीवन धन्‍य तब होलु मेरु,
फलु फूलू मेरी दूधबोली भाषा.......

7.11.2015

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