Tuesday, November 17, 2015

सुबेर....


आगास मा रतब्‍येणु आई,
अहसास ह्वै रात ब्‍येंगि,
रात की कोखि बिटि,
सुबेर कू जल्‍म ह्वैगि.....
तब दूर खिर्शु की डांड्यौं मा,
झळ झळ सूरज भगवान ऐगि,
उठ्यन मेरा मुल्‍क का मनखि,
खासपट्टी ऊदंकार ह्वैगि......
मेरा गौं बागी नौसा मा,
खूब चैल पैल ह्वैगि,
क्‍वी चार बंठा पाणी ल्‍हेगि,
क्‍वी अपणि भैंसी नह्वैगि....
गौं का बीच चंद्रवदनी मंदिर मा,
क्‍वी द्यू जगौणु घंटी बजौणु,
बोडा कांधि मा हळसुंगि धरि,
अपणा माळ्या बळ्दु हक्‍यौणु.....
कवि जिज्ञासु का गौं मा,
सुबेरकू यनु दृश्‍य होन्‍दु,
दर्द भरि दिल्‍ली की सुबेरदेखि,
यनु भाव कविमन मा औन्‍दु......


15.11.2015

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