Thursday, October 31, 2019

जिंगोली-तोली, भनोली, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड भ्रमण



जिंदगी के सफर में हमारी न जानें किन किन सज्जनों से मुलाकात होती है। फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहां बहुत से लोगों से संपर्क होता है।  फेसबुक मित्रों में से एक मेरे मित्र हैं श्री मनोज तिवाड़ी।  जब उनसे परिचय हुआ तो उन्होंने मुझे बताया मेरे पिताजी तब स्वर्गवासी हो गए थे, जब मैं बहुत छोटा था।  प्रेमवश मनोज मुझे चाचा कहने लगा और पिता समान आदर देने लगा। 

जनवरी, 2019 में उसने मुझे बताया, चाचा 22 फरवरी को मेरी शादी है, और आपको जरुर शादी में आना है।  मैंने वादा किया, जरुर आपके शादी समारोह में शामिल होऊंगा।कारणवश शादी का दिन 22 फरवरी के बजाय 24 फरवरी को निर्धारित हुआ।  मनोज ने मुझे बताया, चाचा आप हल्दवानी आ जाना।  वहां से मेरे गांव के लिए सीधी जीप सेवा है।  मैं ड्राईवर को बता दूगां, वो आपको हल्दवानी से मेरे गांव सीधे पहुंचा देगें।  मैंने मनोज को बताया मैं 22 फरवरी सांय दिल्ली से प्रथान करुगां।  मनोज ने मुझे ड्राईवर का मोबाईल नंबर दे दिया था और कहा, हल्दवानी पहुंचने से पहले आप ड्राईवर से संपर्क कर लेना।

      22 फरवरी, 2019 को सांय कार्यालय से छुट्टि होने के बाद मैं रिंग रोड़ हयात होटल के सामने पहुंचा।  वहां से मैंने आनंद विहार के लिए 543 नंबर बस पकड़ कर प्रस्थान किया।  लाजपत नगर फ्लाईओवर पर काफी जाम लगा हुआ था।  मैं चाह रहा था मुझे आनंद विहार में ज्यादा इंतजार न करना पड़े।  लगभग आठ बजे मैं आनंद विहार पहुंचा। हल्दवानी के लिए छोटी बस लगी हुई थी जिस पर लिखा था, हल्दवानी लामगड़।  कंडक्टर ने बताया यह बस हल्दवानी तक जा रही है।  मैंने एक टिकट हल्दवानी का खरीदा और अपनी शीट पर बैठ गया।  बस नें लगभग 9.30 पर हल्दवानी के लिए प्रस्थान किया।  रात्रि का सफर वैसे तो सुगम लगता है, क्योंकि रात्रि में जाम की समस्या नहीं होती।  बस गढ़गंगा, रामपुर, अमरोहा होती हुई सुबह रुद्रपुर पहुंची।  वहां हाईवे का विस्तारीकरण होने के कारण गाड़ी हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ रही थी।  23 फरवरी को लगभग चार बजे बस हल्दवानी बस अड्डे पहुंची।  ठंड बहुत थी, मैं रोडवेज बस अड्डे पर गया और जीप ड्राईवर राजू जोशी जी से संपर्क किया।  उन्होंने बताया हम अभी थोड़ी देर में आते हैं। 

         बस अड्डे पर मुझे एक महिला पुरुष संवाद करते हुए दिखाई दिए।  मैं ड्राईवर के फोन की इंतजार में था।  कुछ देर बाद ड्राईवर का फोन आया, आप बाहर आ जाओ, हमारी बोलेरो गाड़ी का नंबर 0862 है।  मैं तुरंत बाहर की ओर गया और मुझे जीप दिख गई।  मैंने अपना परिचय दिया और ड्राईवर ने मुझे जीप के अंदर बैठने को कहा।   थोड़ी देर बाद जिस महिला को मैंने बस अड्डे पर देखा था वो जीप के पास आई और आगे की शीट पर बैठ गई।  कुछ देर बाद मेरा संवाद उन महिला से हुआ तो उन्होंने मुझे बताया मनोज मेरे देवर हैं। हम भी शादी में शामिल होने जा रहे हैं।   कुछ देर बाद जीप ड्राईवर ने गाड़ी को रुद्रपुर की ओर मोड़ा।  मैं समझ रहा था यहां से हो सकता है जाने का रास्ता हो।  कुछ देर बाद मुझे पता लगा वे सवारी लेने के लिए जा रहे थे।  सवारी लेने के बाद हम फिर बस अड्डे के पास पहुंच गए।  दिल्ली से मनोज के स्टाफ के दो लड़के आ रहे थे।  उनकी इंतजार में लगभग सुबह के सात बज गए।  जब वे लड़के पहुंचे तो हमने भीमताल की ओर प्रस्थान किया।  इस रुट पर मैं पहले भी सफर कर  चुका था।  गाड़ी तेज गति से भीमताल की ओर भाग रही थी।  भीमताल पहुंचने पर मुझे भीमताल झील को निहारने का मौका मिला।  सोच रहा था, इतनी ऊंचाई पर इतनी सुंदर झील कितनी मनमोहक है।

         भीमताल, खाटुनि से हमारी गाड़ी दायीं ओर मुड़ गई।  कुछ चढ़ाई के बाद हम अब पदमपुरी की तरफ जा रहे थे।  घना जंगल, सुंदर खेत और होटल मोटल रास्ते में नजर आ रहे थे।  पहाड़ का सौंदर्य मनोहारी होता है।  मुझे तो पहाड़ घूमने का बहुत शौक है। जब मौका मिलता है, चल देता हूं। पुल पार करने के बाद गाड़ी चढ़ाई पर चढ़ रही थी और रास्ते में लाल सुर्ख बुरांस खिले हुए नजर आ रहे थे।  धारी को पार करने के बाद हम धानाचूली पहुंचे।  वहां से विराट हिमालय बहुत मनोहारी लग रहा था।  रास्ते में सेब के सूखे पेड़, हरे भरे खेत और लाज, होटल नजर आ रहे थे।  रास्ता लगभग उतराई का था।  मैं ड्राईवर से पूछ रहा था अभी कितना सफर है।  रात्रि के सफर में नींद न आने के कारण सिर में कुछ दर्द सा हो रहा था।  सफर जारी था और मैं पहाड़ की वादियों में अपने को दर्द भरी दिल्ली से दूर खोया हुआ अहसास कर रहा था।  लगभग 11 बजे हम सैर फाटा पहुंचे।  वहां पर चाय पीने के बाद जैंती की ओर प्रस्थान हुआ।  हमारी गाड़ी उतराई की ओर अग्रसर थी।  कई पहाड़ उतरने के बाद गाड़ी पनार पुल पर पहुंची।  वहां से हम भनोली तहसील की तरफ जा रहे थे।  ईलाका हरा भरा कम था और अहसास हो रहा था यहां बहुत गर्म होता होगा।  एक जगह पर हम उतर गए, ड्राईवर पास ही अलग रोड पर सवारियों को छोड़ने गया।

         कुछ देर बाद गाड़ी लौटी और हम उसमें बैठ गए। लगभग चार किलोमीटर चलने के बाद भनोली बाजार आया।  वहां रुककर चाय पानी का दौर चला।  बाजार में बहुत चहल पहल थी।  एक बरात वहां पर ठहरी हुई थी।  बराती शराब के ठेके पर घिरे हुए थे।  लगभग एक घंटा रुकने के बाद हमारी गाड़ी ने जिंगाली तोली के लिए प्रस्थान किया।  सड़क घुमाव दार थी, रास्ते में कई गांव थे। लगभग तीन बजे हम जिंगोली तोली पहुंचे।  मनोज तिवाड़ी से मुलाकात हुई और उनके घर में शादी की चहल पहल नजर आ रही थी।  मनोज की माता जी से मुलकात हुई। चाय पीने के बाााद दमैंने पहले स्नान किया और कमरे में आराम करने लगा।          

         शादी की तैयारियां चल रही थी। शाम को मेंहदी का कार्यक्रम था।  मनोज के परिजनों से परिचय हो रहा था।  ठंड काफी थी, दिन में धूप सेकनें का अनंद लिया।  मैं  परबतों को निहारते हुए प्रकृति का आनंद ले रहा था।  शाम को मेंहदी समारोह का आनंद लेते हुए मेहमानों से संवाद हुआ।   काफी देर रात तक चहल पहल रही और बाद में मैं सो गया। बरात दिन दिन की होने के कारण बरात को सुबह प्रस्थान करना था।

         सुबह जागने पर मैंने देखा, पिथौरागढ़ की तरफ से सूर्योदय हुआ और सूर्य की सुनहरी किरणें परबतों के माथे पर फैल रही थी और पनार नदी घाटी में शांति का वातावरण था।  पक्षियों का कोलाहल, गेहूं के हरे भरे खेत, सगोड़ियों में पालक, मूली, राई उगी हुई थी।  इधर बरात प्रस्थान की तैयारियां चल रही थी।  मैंने सुबह स्नान किया और तैयार होकर नाश्ता किया।  लगभग नौ बजे सुबह बरात ने प्रस्थान किया ।  बरात जब भनोली पहुंची तो वहां पर कुछ देर रुकी रही।  कुछ देर रुकने के बाद बरात ने सिमलखेत को प्रस्थान किया।  उतराई का रास्ता था, सामने दन्यां बजार धार के ऊपर दिख रहा था। जब हम सिमलखेत पहुंचे तो गाड़ियों ने गाड की तरफ बनी कच्ची रोड पर चलना शुरु किया।  मैं सोच रहा था, आगे सड़क होगी।  पनार नदी के तट पर पहुंचने के बाद गाड को पार करते हुए गाड के किनारे, कभी गाड़ को पार करते हुए हमारी गाड़ियां चल रही थी। ये जिंदगी में मेरा पहला अनुभव था, कि हम गाड में चलती हुई गाड़ी में बैठकर सफर कर रहे थे।  गाड के तट पर ही दुल्हन का घर था।  पूछने पर पता लगा हम अब पिथौरागढ़ जिल्ले में हैं।  गाड के तट पर जलपान की व्यवस्था थी।  फरवरी का महीना होते हुए भी गाड के किनारे गर्मी का अहसास हो रहा था। 

         कुछ देर बाद बरात दुल्हन के घर पहुंची।  एक तरफ शादी की रस्में चल रही थी और दूसरी ओर भोजन का दौर।  जिस खेत में भोजन की व्यवस्था थी, उस खेत के कच्चे गेहूं भोजन व्यवस्था के लिए उखाड़ दिए गए थे। सामने पहाड़ बहुत ऊंचे थे, गरदन पीठ की तरफ घुमाने पर भी ऊंचे दिख रहे थे।  गाड के पार एक सड़क थी जो लोहाघाट से पिथौरागढ़ के लिए जा रही थी।  संध्या का समय हो चुका था।  मैं बरात के साथ ही आया, कुछ लोग पहले ही गांव के लिए प्रस्थान कर चुके थे।  बरात ने वापसी के लिए प्रस्थान किया। 

     अब हम पनार गाड को पार करके सामने के पहाड़ पर बनी सड़क पर गाड़ी से चढ़ते जा रहे थे।  नीचे खाई नजर आ रही थी और डर का अहसास भी हो रहा था। कुछ समय बाद हम सिमलखेत पहुंचे।  सिमलखेत में सिंचित खेत नजर आ रहे थे।  बहुत ही रमणीक जगह है सिमलखेत।   बरात की गाड़ियां दौड़ रही थी, आगे चलने पर एक सड़क सीधी पिथौरागढ़ की तरफ जा रही थी।  हमारी गाड़ी ने ऊपर भनोली तहसील की सड़क पर प्रस्थान किया।  भनोली में रुकने के बाद गाड़ियों ने जिंगोली तोली मनोज तिवाड़ी के गांव के लिए प्रस्थान किया।  लगभग रात्रि 9 बजे बरात जिंगोली तोली पहुंच गई। 

     हम मनोज के ऊपरी तल वाले घर में बैठ गए। थकावट का एहसास हो रहा था।  मेहमानों की चहल पहल और भोजन का दौर चल रहा था।  हमनें भोजन लगभग रात्रि 11 बजे किया।  दिन का भोजन लेने के कारण भूख कम ही थी।   बातचीत का दौर खत्म होने के बाद मैं सो गया। 

   24 फरवरी सुबह उठने के बाद मैंने स्नान किया। स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था।  मुझे कुछ अपच ओर पेचिस की शिकायत हो गई थी।  आसमान में बादल होने के कारण ठंड काफी थी।  जिंगोली तोली के पास कुछ ऊंचे टीलेनुमा पहाड़ी थी।  सोच रहा था वहां जाकर चहुंओर का दृष्य देखूं पर चाहत पूरी न हो सकी।  दिन कब कट गया पता ही नहीं चला।  मनोज की शादी के बहाने मुझे कुमाऊं का ये क्षेत्र देखने को मिला।  सोचा एक पंथ दो काज हो गए।  25 फरवरी सुबह मुझे दर्द भरी दिल्ली के लिए प्रस्थान करना था।  रात्रि में भोजन करने के बाद मैं सो गया।

     25 फरवरी सुबह उठने पर मैं अपने को कमजोर महसूस कर रहा था।  प्रस्थान से पूर्व मुझे तीन चार बार पेचिस हो चुकी थी ।  कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा था।  सुबह 6 बजे हमनें दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। जिस गाड़ी से मैं आया था उसी गाड़ी से लौट रहा था।  गाड़ी ऊंचाई की तरफ भाग रही थी।  सैरफाटा पहुंने पर गाड़ी रुकी ।  राजू ड्राईवर और अन्य लोगों ने भोजन किया।  मुझे तो भूख लग ही नहीं रही थी।   सोच रहा था दिल्ली पहुंचकर ही आराम मिलेगा।  धानाचूली में बर्फ पड़ी हुई थी, दूर दूर तक बर्फ से ढ़के पहाड़ नजर आ रहे थे।  लगभग बारह बजे हम हल्दवानी बस अडडे पहुंचे।   तुरंत ही मुझे दिल्ली की गाड़ी मिल गई। 

     लगभग सात बजे मैं दिल्ली पहुंचा ।  शरीर काफी थकावट महसूस कर रहा था।  किसी भी क्षेत्र की यात्रा करने पर मन को खुशी का अहसास होता है।  मुझे खुशी थी कि मैंने कुमाऊं का एक अलग क्षेत्र का भ्रमण किया।   उत्तराखण्ड के हर भू भाग को निहारने की मेरी तमन्ना रहती है।   नौकरी में इतनी स्वतंत्रता नहीं होती कि लगातार भ्रमण किया जा सके।  यात्राएं करने से मन को सकून मिलता है।  दिल्ली जैसे महानगर की प्रदूषण एवं जंजाल भरी जिंदगी से दूर पहाड़ पर जाना मेरा सौभाग्य होता है।  मेरा प्रयास है, संपूर्ण पहाड़ का भ्रमण करते हुए जिंदगी का आनंद लूं।  

जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 26/2/2019    

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