Wednesday, April 7, 2021

ढुंगा

 


जब क्वी ब्वल्दु मनखि कु,

बल तू ढुंगू छैं,

सुणदन तब ढुंगा,

ह्वन्दा छन भारी नाराज,

तब ब्वल्दन,

ढुंगा मनख्यौं कु,

तुम छैं ढुंगा,

अर दुमुख्या मनखि।

 

सच मा ढुंगा द्यब्ता छन,

मूर्ति बणैक मंदिर मा,

पूजदन मनखि,

घर कूड़ा भि बणौंदन,

जख अपणु जीवन बितौन्दन,

मण्डाण मा ढुंगा बिछैक,

ऊंका ऐंच द्यब्ता नचौन्दन।

 

ढुंगा ब्वल्दन,

हम्न पाड़ नि त्यागि,

तुम मनखि यना छैं,

जख मिलि गळ्खि,

वे मुल्क देस भागी।


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू

रचना: 1634

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