Tuesday, November 2, 2010

"तीन पराणी"

"तीन पराणी"

एक गौं का तीन पराणी,
घन्ना, मंगतु, मोळू,
ऊँचि धार मां बैठि बोल्दा,
कब होलु मुंड निखोळू.

घन्ना भै फर रोग लगिगी,
पेण लग्युं छ दारू,
समझावा त बोल्दु छ,
कन्नु मुर्दा मरि तुमारू.

जन्म बिटि छ निर्पट लाटू,
फुंड धोल्युं स्यु मोळू,
उल्टा काम करिक बोल्दु,
कब होलु मुंड निखोळू.

मंगत्या बण्युं छ मंगतु गौं माँ,
या छ वैकि लाचारी,
अळगस का बस ह्वैक होईं छ,
दुनिया वैकी न्यारी.

जब जब कठा होंदा छन,
गौं का यी तीन पराणी,
छुयों माँ सी बिल्मै जांदा,
ब्वयै रन्दि, तौंकी भट्याणि.

तौ भी सैडा गौं का लोग बोंना छन,
यी छन हमारा लाल,
ऊंसी त यी भला ही छन,
जौन छोडि़याली गढ़वाल.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(१०.६.२००६ को रचित, मेरा पहाड़ और यंग उत्तराखंड पर प्रकाशित)

पोस्टेड:३०.०५.२००८

jayara@yahoo.com
Source: Young Uttarakhand Forum

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