Wednesday, November 17, 2010

"नाती की पाती"

दादा चश्मा लगैक,
पढ़ण लग्युं छ,
नाती की पाती,
क्या होलु लिख्युं?
नाती लिखणु छ,
दादा जी क्या बतौण,
तुमारी याद मैकु,
अब भौत सतौणि छ,
बचपन मा तुम दगड़ि,
जू दिन बितैन,
अहा! उंकी याद अब,
मन मा औणि छ.
आज भि मैं याद छ,
जै दिन मैन ऊछाद करि थौ,
तब आपन मैकु,
पुळक खूब समझाई,
पर मेरा बाळा मन मा,
उबरि समझ नि आई.
अब मैं बिंगण लग्युं छौं,
आपसी आज दूर हवग्यौं,
पुराणी यादु मा ख्वग्यौं,
अब मैं जब घौर औलु,
चिठ्ठी मा जरूर लिख्यन,
क्या ल्ह्यौण तुमारा खातिर,
अब ख़त्म कन्नु छौं पाती,
तुमारा मन कू प्यारू,
मैं तुमारु नाती.....
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
http://hillwani.com/ndisplay.php?n_id=181

1 comment:

  1. दादा मनु छ हुक्का कि सोडी
    पर आन्खियों मा नाति कि मुखडी
    सालो हवेगेन नाती नी बौडी
    सभी चली गेन हम तै छोडी
    मेरा अपणो आवा बौडी
    हमतै ना जावा छोडी

    कख गै होला उ दिन जब दादा नाती तै घुघोती खिलान्दू छ अब दादा बस उ दिनो तो सोची सोची की मन मा उमाल भोरी आणी होली

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