Wednesday, February 8, 2012

हे पहाड़ी

पहाड़ तैं पछाण,
जू हमारू छ पराण,
जै फर हम सनै छ,
भारी अभिमान,
कथगा प्यारू,
दुनिया मा न्यारू,
उत्तराखंड्यौं की शान,
देवभूमि,
जख देवतों का थान,
स्वर्ग का सामान,
जख हैंस्दु छ हिमालय,
प्यारा बुरांश तैं हेरी,
हे पहाड़ी,
ज्व जन्मभूमि छ,
तेरी अर मेरी.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ९.२.२०१२
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
इ-मेल: j_jayara@yahoo.com
www.pahariforum.net

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