Thursday, March 1, 2012

"मैं पहाड़ी हूँ"

जन्म से और कर्म से,
संस्कार से,विचार से,
पहाड़ प्रेम से,
पहाड़ से दूर रहकर भी,
क्योंकि,
मैंने पहाड़ का,
अन्न खाया है,
ठण्डा पानी पिया है,
फ्योंलि और बुरांश की,
सुन्दरता को देखा है,
चंद्रकूट पर्वत की चोटी,
चन्द्रबदनी मन्दिर से,
उत्तराखंड हिमालय को,
कई बार निहारा है,
पहाड़ के पत्थरों में,
देवभूमि के देवताओं को,
नयनों से निहारा है
कलम से अपनी,
पहाड़ का गुणगान,
मन से किया है.

एक दिन मेरा,
पहाड़ की पहाड़ी से,
साक्षात्कार हुआ,
जब मैं उस पहाड़ी की,
पीठ पर बैठा था,
उसने मुझसे प्रश्न किया,
तू कौन है?
मैंने कहा,
आपने पहचाना नहीं,
जगमोहन सिंह जयाड़ा,
गढ़वाली कवि "जिज्ञासु",
आपका प्यारा पर्वतजन,
"मैं पहाड़ी हूँ".
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: १.३.२०१२

1 comment:

  1. सच जब हम पहाड़ को दिल के गहराई से महसूस करते हैं तो से हमसे बात करते हैं ...एक कवि ह्रदय से निकली सुन्दर रचना...

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