Tuesday, March 20, 2012

"प्यारा बसंत"

तेरी जग्वाळ मा,
दिन-दिन काटिन मैन,
अब तू यीं धरती मा,
हमारा देश अयुं छैं,
त्वै हेरि मन मा अब,
सकुन छ अर चैन...

बौळ्या बुरांश होलु,
बणाँग लगौणु,
कखि दूर,
लखि बखि बण मा,
मन मा उलार होलु,
बुरांश त्वै देखण मा,
कुतग्याळि सी लगणि होलि,
हर पर्वतजन का मन मा,
अपणा मुल्क या दूर देश,
तरसेणा भी होला,
मन ही मन मा,
हे! "प्यारा बसंत"...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: २०.३.२०१२
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )

1 comment:

  1. भौत अच्छी रचना सर।
    मेरु ब्लाग "गढ़वाली कविता" मा आपकु हार्दिक स्वागत करदु।
    http://garhwalikavita.blogspot.com/

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