गए थे तीर्थ यात्री,
भारत के राज्यों से,
देवभूमि उत्तराखण्ड,
जहां विराजते हैं,
बद्री और केदार.....
जीवन में जरुर जांऊ,
पुरखे भी तो गए थे,
जब देखते हैं,
उनके नाम पोथी में,
और अपना नाम भी,
लिखवाते हैं,
अगली पीढ़ी में,
जब कोई आएगा,
देखेगा हमारा नाम....
केदारनाथ जी में,
जो काल के मुंह में,
समा गए,
अन्य जगहों पर भी,
जो आपदा में घिर गए,
जिनकी कोई खबर नहीं,
परेशान उनके परिजन,
जिनके मन में कहीं,
भगवान के प्रति,
मन में क्या भाव,
पैदा हो रहा होगा?
बेबस इंसान को,
सबक लेना होगा,
पहाड़ पर आपदाएं,
अतीत से आती हैं,
इंसान को समझाती हैं,
फिर भी नहीं समझता,
अब भी समझो,
नदी तट से दूर रहना,
न जाने कब उग्र हो,
तबाही का सैलाब,
तटों तक ले आए...
तीर्थाटन के लिए श्रद्धालु?
आएगें फिर भी,
उनकी आस्था जो ठहरी,
देवताओं के धाम में,
पर्यटन पहाड़ के लिए,
अभिशाप है,
कहीं प्रकृति का कोप,
इसके प्रति तो नहीं?
उत्तराखण्ड में 16 जून-2013 को नदियों में आई विनाशकारी बाढ़ और उसके प्रभाव पर मेरी स्वरचित हिन्दी कविता.
भारत के राज्यों से,
देवभूमि उत्तराखण्ड,
जहां विराजते हैं,
बद्री और केदार.....
हर किसी के मन में,
एक तमन्ना होती है,जीवन में जरुर जांऊ,
पुरखे भी तो गए थे,
जब देखते हैं,
उनके नाम पोथी में,
और अपना नाम भी,
लिखवाते हैं,
अगली पीढ़ी में,
जब कोई आएगा,
देखेगा हमारा नाम....
केदारनाथ जी में,
जो काल के मुंह में,
समा गए,
अन्य जगहों पर भी,
जो आपदा में घिर गए,
जिनकी कोई खबर नहीं,
परेशान उनके परिजन,
जिनके मन में कहीं,
भगवान के प्रति,
मन में क्या भाव,
पैदा हो रहा होगा?
प्रकृति का रौद्र रुप,
भला कौन रोक सका,बेबस इंसान को,
सबक लेना होगा,
पहाड़ पर आपदाएं,
अतीत से आती हैं,
इंसान को समझाती हैं,
फिर भी नहीं समझता,
अब भी समझो,
नदी तट से दूर रहना,
न जाने कब उग्र हो,
तबाही का सैलाब,
तटों तक ले आए...
क्या भविष्य में,
फिर नहीं आएगें,तीर्थाटन के लिए श्रद्धालु?
आएगें फिर भी,
उनकी आस्था जो ठहरी,
देवताओं के धाम में,
पर्यटन पहाड़ के लिए,
अभिशाप है,
कहीं प्रकृति का कोप,
इसके प्रति तो नहीं?
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, 20.6.2013उत्तराखण्ड में 16 जून-2013 को नदियों में आई विनाशकारी बाढ़ और उसके प्रभाव पर मेरी स्वरचित हिन्दी कविता.
No comments:
Post a Comment