Thursday, June 6, 2013

बारिश की बौछारें....

जब सुनता हूं,
पड़ रही हैं आजकल,
अपने पहाड़ पर,
मन कल्‍पना में,
भीगने लगता है,
दिल्ली की भयंकर,
झुलसाने वाली गर्मी में....

जून माह की गर्मी,
न जाने क्‍यों,
इतना सता रही है,
तुझे तेरा पहाड़,
बहुत याद आता है,
चला क्‍यों नहीं जाता?
जालिम बता रही है।

इंतजार है,
कब पड़ेगीं दिल्‍ली में,
बारिश की बौछारें,
भीगेगा तन मन,
हर्षित होगा फिर,
कवि जिज्ञासु का मन।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
6.6.13

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