Tuesday, June 18, 2013

“सबक सीखा “

पहाड़ मा प्रलय,
पैलि बार नि आई,
फर्क यथगा छ,
पहाड़ का पाणी कू,
विनाशकारी मिजाज,
आज तक कैकि,
समझ मा नि आई....
उत्‍तरकाशी, श्रीनगर,
उजड़दु गैन बसदु गैन,
बिरही गंगा की बाढ,
सतपुली नयार की बाढ़,
कंडोलियागाड की बाढ़,
अतीत का गवाह छन,
केदारनाथ प्रलय हवैगि,
लामबगड़ कख समैगी,
रड़दा पाखा उजड़दा कूड़ा,
पंच प्रयाग मा प्रलय,
फेर भी मनखि,
वास करला,
उत्‍तराखण्‍ड की,
धैाळयौं का धेारा....

किलै हवै होलु यनु?
यत पहाड़ मा पाप्‍यौं कू,
भार बढिगी,
जन कि यात्रा मार्ग मा,
आफत मा पड़यां,
तीर्थ यात्रियौं की मदद,
कन्‍न का बजाय,
लोग उंकी जेब काटणा छन,
यू ही संदेश जालु,
देवभूमि का मनखि,
देव्‍ता समान न हवैक,
रागस छन,
पर यनि बात भिछ,
कुछ लोगुन मदद भी करि,
बिना कुछ लिन्‍या,
पहाड़ का मैमानु की....

भविष्‍य मा,
जख तक धौळयौं का,
पाणिन प्रलय मचाई,
वख तक बस्‍ती बसौणु,
बिल्‍कुल बंद हो,
जख तक संभव हो,
सड़क मार्ग निर्माण नदी का,
बिल्‍कुल पास न हो,
नदी घाटी क्षेत्र,
पारिस्‍थितिकीय दृष्टि सी,
संवेदनशील क्षेत्र घोषित हो,
ग्‍त आज बतौणु छ,
अब भी सबक सीखा .....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
उत्‍तराखण्‍ड में आयी बरसाती आपदा, जिसमें केदारनाथ और लामबगड़़ तबाह हो गया बरसाती आपदा पर रचित मेरी गढवाली कविता
19.6.13

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