Thursday, January 29, 2015

दादा बणिक....


भारी खुश होणु छ,
सुखद अहसास होणु छ,
पोता देखिक मन,
जब जब रोणु छ,
खुग्‍लि फर उठैक,
नाती तैं नचाैणु छौं,
बोल्‍दन बल,
पूत सी सूत प्‍यारु होन्‍दु,
सच मा अहसास होणु छ,
सौभाग्‍य मेरु,
दूसरा नौना कू ब्‍यो,
14-15 जनवरी कू होणु छ,
मैं कामना करदु,
यनु सौभाग्‍य दगड़यौं,
जिंदगी मा अापतैं भी मिलु,
मन बुरांस का फूल की तरौं,
आपकी मौळ्यार रुपी,
जिंदगी मा,
दादा बणिक खिलु......


-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
8.1.2015, दोपहर 1.15

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