Wednesday, January 28, 2015

घौर ऐ जवा....


कथगै दाना मनखि,
अपणा पहाड़ का,
सेवा निवृत्‍ति का बाद,
महानगरु मा,
बुढ़ेन्‍दा का दिन,
बितौणा छन....

पहाड़ ऊं तैं,
मुसीबत का पहाड़,
लगणा छन,
अपणु मन बिळ्मौणा छन,
पहाड़ ऊंकी जग्‍वाळ मा छन,
हे अब त अवा,
धरती छोडण सी पैलि,
उत्‍तराखण्‍ड की धरती कू,
श्रृंगार त करा,
कूड़ी तुमारी खंड्वार,
पुंगड़ि बांजा पड़ीं छन,
किलै मरी तुमारु मन,
घौर ऐ जवा...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
 का कविमन कू कबलाट
सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 29.1.2015 11.20 पूर्वाह्न


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