Friday, November 4, 2016

अपणा घौर.....



एक मनखि थौ हुस्यार भारी,
एक मनखि तैं प्यार सी पैग,
पिलै पिलैक करिगी अत्याचारी,
समर्थ नि रै वे बिचारा फर,
तब अपणा घौर जाण की,
याद आई वे खाणौं खाण की,
घर वाळि बाटु देखणि होलि,
तब वेन वे हुस्यार मनखि कू,
रग् बग् करदु करदु बोलि,
भै मैकु तू घौर छोड़ दी......

जब ऊ घौर पौंछि,
कुटमदारिन करि किकलाट,
क्या करु बिचारु,
पेट मा भूक कू होणु कबलाट,
बोन्न लगि हे भग्यानि,
त्वैकु मेरी हात जोड़ै छ,
फलाणा भै न मैकु पिलाई,
क्या करि मैंन तेरु,
तौ भी मैं घौर आई.......

गुरौं कथ्गा दूर चलि जौ,
बौड़िक औन्दु छ अपणा घौर,
दरोळा जू भी होन्दन,
करदन गुरौं की सौर......

दरोळा जब ज्यु भरिक पेन्दन,
नशा लगि जान्दु ऊं तैं भारी,
भ्वीं लठगदु अर झूमिक,
अपणा घौर औणु,
होन्दि तौंकी लाचारी......
12.10.2016

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