Thursday, January 6, 2011

"कब आलु ऊ दिन"

जब तुमारा दगड़ा,
कखि ऊँचि धार ऐंच,
भ्वीं मा बैठिक,
लगौलु छ्वीं बात,
बचपन का बिगळ्याँ,
प्यारा दगड़्यौं की,
अपणा मुल्क का,
रौ रिवाज की,
रीत रसाण की,
जागर अर मंडाण की,
बाँज बुरांश की,
घुघती अर हिल्वांस की,
हिंवाळि डाँडी-काँठ्यौं,
सर-सर बगदि,
अलकनंदा भागीरथी की,
उत्तराखंड हिमालय की,
कुलदेवी मा चन्द्रबदनी,
सुरकंडा माता की.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ७.१.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
www.pahariforum.com

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