Monday, January 17, 2011

झगुल्या

देवभूमि उत्तराखंड के एक गाँव में शेर सिंह और उसकी पत्नी बैशाखी हमेशा एक चिंता में खोये रहते थे. शादी हए बहुत साल हो गए पर औलाद की प्राप्ति नहीं हुई. शेर सिंह की माँ धार्मिक विचारों की थी. बेटे की कोई संतान अब तक न होने के कारण बहुत उदास और दुखी रहती थी. कामना करती "हे कुल देवतों दैणा होवा, आज तक मैकु नाती नतणौं कू मुख देखणु नसीब नि ह्वै सकि". उसके साथ की गाँव की महिलाएं "नाती नतणौं" का सुख देख रही थी.

समय बीतता गया, एक दिन शेर की माँ चैता को चन्द्रबदनी मंदिर जाने का मौका मिला. घर से नहा धोकर उसने भगवती माँ चन्द्रबदनी के लिए अग्याल रखी. गाँव की बहुत सी महिलाएं बच्चे और पुरूष माँ चन्द्रबदनी के दर्शनों के लिए जा रहे थे. चैता अपनी लाठी के सहारे ऊकाळ का रास्ता चढ़ने लगी. उसकी आँखों में आज एक चमक थी. मन में सोच रही थी आज मैं भगवती से अपने शेर सिंह के लिए संतान की कामना करूंगी.

चैता जब चन्द्रबदनी परिसर में जब पहुँची तो उसने दोनों हाथ जोड़कर दूर से भगवती को मन ही मन याद किया. अष्टमी होने के कारण मंदिर में बहुत भीड़ थी. चैता किसी तरह आगे बढ़ रही थी. मंदिर के अन्दर पंहुंच कर चैता ने भेंट अर्पित की और माँ से मन्नत मांगी. दर्शन करने के बाद सथियौं के साथ चैता घर के लिए वापस लौटी. चारौं और उसने नजर दौडाई और कहने लगी "आज ऐग्यौं माँ मैं, अब कुजाणि अयेन्दु छ की ना".

बहुत दिन गुजर जाने के बाद चैता को वह ख़ुशी जो वह चाहती थी सुनने को मिली. वह अपनी ब्वारी का खूब ख्याल रखने लगी. बेटा शेर सिंह भी बहुत खुश था. अपनी माँ के चेहरे पर रौनक देखकर वह मन ही मन खुश रहने लगा. चैता ने एक दिन शेर सिंह से कहा, बेटा तू एक मीटर पीला कपड़ा ले आना. शेर सिंह कैसे मन कर सकता था. उसने अपनी माँ से कहा मैं आज ही ला देता हूँ. शेर सिंह जब दुकान से एक मीटर पीला कपड़ा लाया तो चैता ने सुई धागे से एक झगुली सिलना शुरू किया. मन में सोचने लगी अगर बहु का लड़का हुआ तो उसका नाम "झगुल्या" रखूँगी.

चैता ने झगुली सिलकर अपने लकड़ी के संदूक में रखी थी. दिन माह गुजरते वह समय आ गया जिसकी चैता को इंतजारी थी. बहु बैसाखी ने पेट दर्द बताया तो चैता की आँखों में चमक और चिंता के भाव आने लगे. गाँव की दाई रणजोरी को तुंरत बुलाया गया. रणजोरी कहने लगी "दीदी चैता तू चिंता न कर, ब्वारी कू ज्यूजान ठीक तरौं सी छूटी जालु". शेर सिंह तिबारी में बैठा अपना हुक्का गुड़ गुडा रहा था. उसे इंतज़ार थी कब पत्नी का प्रसव हो जाए. वह इन्तजार में ही था, बच्चे के रोने की आवाज आने लगी. रणजोरी ने चैता को बधाई दी और कहा "दीदी तेरी इच्छा पूरी करियाली माँ चन्द्रबदनी न...नाती छ तेरु होयुं" . चैता मन ही मन माँ चन्द्रबदनी का सुमिरन करने लगी और कहने लगी "माँ सुण्यालि त्वैन मेरी पुकार". चैता के मन में बिजली सी दौड़ गई और अपना बुढापा भूलकर प्रफुल्लित होकर इधर उधर जाने लगी.

पंचोला का दिन जब आया तो चैता ने नाती को झगुलि पहनाई और कहा "येकु नौं मैं "झगुल्या" रखणु छौ". हे भगवती राजि खुशि राखि मेरा नाती तैं". चैता की दिन रात खुश रहने लगी. गौं का लोग रौ रिश्तेदार सब्बि चैता तैं बधाई देण का खातिर ऐन. जब "झगुल्या" साल भर हो गया तो चैता ने शेर सिंह को चन्द्रबदनी का पाठ और बड़ा सा चाँदी का छत्र चढाने के लिए कहा. शेर सिंह माँ की की इच्छा के अनुसार चाँदी का छत्र लाया और पाठ करवाकर चन्द्रबदनी माँ के मंदिर यात्रा ले गया. सारे गाँव को उसने दावत दी और औजि को बुलाकर मंडाण लगवाया.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
10.7.2009

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