Tuesday, January 11, 2011

"दिनमानि कू ब्यौ"

बग्त बदलि मन भी,
बदलिगी सब्बि धाणि,
प्यारा पहाड़ मा अब,
दिन-दिन की बारात जाणी,
सोचा हे सब्बि, किलै यनु ह्वै.......

ये जमाना मा ब्योलि कू बुबाजी,
डरदु छ मन मा भारी,
दिनमानी की बारात ल्ह्यावा,
समधि जी, कृपा होलि तुमारी,
किलैकि, अजग्यान का बाराति,
अनुशासनहीन होन्दा छन....

एक जगा गै थै,
ब्याखुनि की बारात,
दरोळा रंगमता पौणौन,
खूब मचाई ऊत्पात,
फिर त क्या थौ,
खूब मचि मारपीट,
चलिन ढुंगा डौळा,
अर कूड़ै की पठाळि,
ब्यौलि का बुबाजिन,
झट्ट उठाई थमाळि,
काटि द्यौलु आज सब्ब्यौं,
बणिगि विकराल,
घराति बरात्यौं का ह्वैन,
भौत बुरा हाल.....

घ्याळु मचि, रोवा पिट्टि,
सब्बि अफुमा बबरैन,
चकड़ीत बराति,
फट्ट फाळ मारी,
कखि दूर भागिगैन,
बुढया खाड्या शरीफ पौणौ की,
लोळि बल फूटिगैन,
हराम ह्वैगि पौणख,
सब्बि भूका रैन,
वे दिन बिटि प्रसिद्ध ह्वै ,
"दिनमानि कू ब्यौ"......

(अपने पहाड़ के श्री परासर गौड़ साहिब जी चिरपरिचित कवि, लेखक एवं फिल्मकार
ने भी एक बारात में मारपीट का अनुभव अपनी रचना में व्यक्त किया है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
स्वरचित(११.९.२००९)
(सर्वाधिकार सुरक्षित, प्रकाश हेतु अनुमति लेना अनिवार्य है)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी-चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)

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