Tuesday, September 13, 2011

"जोंखा"

(कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" )
जौंकू हमारा उत्तराखण्ड मा,
भारी मान सम्मान छ,
सच मा बोला,
मर्द की शान छन,
ललकार भी करदा छन लोग,
छन बे त्वे फर जोंखा,
पर क्या बोन्न?
बग्त बल बलवान होंदु,
जोंखा वाळा भी कबरी,
जैका सामणी नतमस्तक ह्वैक,
लाचार सी ह्वै जाँदा छन.

पर जोंखा वाळा की खोज,
बग्त औण फर जरूर होन्दि छ,
किलैकि ऊं फर लोग थोड़ा भौत,
भरौंसू करदा छन,
सामाजिक अर,
राजनितिक दृष्टि सी भी,
ज्व भलि बात छ,
हे! बद्रीविशाल जी,
उत्तराखण्ड कू कल्याण हो.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १३.९.२०११)

2 comments:

  1. जोंखा या जोंगा ? जयाडा जी आपकू मतबल सैद जोंगों सि हूलू, भाई, अब जोंगा होला त मर्द गणेलु न ? जैका नी त.... पर हस्ता हस्ता बोला, क्वी सुणु न रे.....!

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  2. जोंखा या जोंगा ? जयाडा जी आपकू मतबल सैद जोंगों सि हूलू, भाई, अब जोंगा होला त मर्द गणेलु न ? जैका नी त.... पर हस्ता हस्ता बोला, क्वी सुणु न रे.....!

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