(द्वारा/रचित/ जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
तुमारा मुल्क की छौं हम, निछौं बल अनाड़ी,
हमारा बिना नि चल्दी, तुम सब्यौं की गाड़ी,
होला तुम सोचण लग्याँ, पैरदि होलि नाक मा,
नथुलि, बुलाक, बदन मा लाल बिलोज साड़ी,
कथगा बौळ्या बणिक घुम्दि, सैडा कुमौं-गढ़वाळ,
घाम, बरखा मा, धार, खाळ, सैण,
ऋषिकेश, मसूरी, देहरादून, कोटद्वार,
रामनगर, हल्द्वानी, काठगोदाम,
जख छन ऊँचि निसि, हरीं भरीं प्यारा पहाड़ की पाड़ी,
सुबेर पैटि हिटा हिटी, तुम सब्यौं की प्यारी छौं,
जी.एम.ओ.यू, टी.जी.एम.ओ.यू,के.एम.ओ.यू. की,
सैडा कुमौं-गढ़वाळ की, रंग बिरंगी गाड़ी........
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १.९.२०११)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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