पिता जी आप अब पित्र हो,
मैं आपका कैसे प्रगट करूँ आभार,
कसक मेरे मन में है अब,
आपके चले जाने के बाद मुझे,
कौन देगा पिता का प्यार और दुलार,
चाहत एक है मन में मेरे,
मुझे फिर पिता जी के रूप में मिलना...
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: 24.९.२०११
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकशित)
(ये मेरे मन के भाव हैं. पिता जी के स्वर्गवासी होने के बाद ऐसा अहसास होता है.))See More
LikeUnlike · · Share · Saturday at 10:33amYashpal Singh Pundir, Rakesh Kundlia, Vijay Jayara and 13 others like this.
Arvind Jayara miss grandpa
Saturday at 10:36am · LikeUnlike
Manish Mehta वाह ! जिज्ञासु जी आपका जवाब नहीं !
Saturday at 10:59am · LikeUnlike
Deepak Paneru क्या बात है कविवर बहुत ही मार्मिक सोच और रचना बाटने के लिए आभार.....
Saturday at 11:38am · LikeUnlike
Bhagwan Singh Jayara bahut marmik sabdo me likhaa hai bhai sahab ,ake dam dil ko chhune wali baat likhi,,,nice,,,,,
Saturday at 12:08pm · LikeUnlike
Sikandar Singh Jayara Bahut badiya bhi shab dil se likhi hai.......
Saturday at 2:13pm · LikeUnlike
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Monday, September 26, 2011
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