Wednesday, September 7, 2011

"पर्वतजन और हिमालय"

रिश्ता कायम रहे, हिमालय अमर रहे,
गंगा यमुना का मैत, शिव शंकर का प्यारा,
जहाँ से निकलती हैं, इनकी अविरल धारा,
जनजीवन का अस्तित्व, सुखमय जीवन हमारा,
हिमालय तुम महान हो, निहार-निहार खुश होता,
पर्वतजन प्यारा,
"पर्वतजन और हिमालय" का रिश्ता,
कायम है अतीत से, चिंता उसे है आपकी,
हे हिमालय.....अस्तित्व कायम रहे तुम्हारा.....
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
E-Mail: j_jayara@yahoo.com 7.9.2011( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)

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